जन्म के बाद से दो साल तक बच्चों को देर तक डायपर पहना कर रखने से पेशाब कंट्रोल करने की क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में बाद में बच्चे को पेशाब रुकता नहीं है। इसके बाद बच्चे कपड़े में ही पेशाब करना शुरू कर देते हैं। यही नहीं लगातार डायपर पहनाने से बच्चों के गुर्दे और पेशाब की नली में इन्फेक्शन हो सकता है। यह जानकारी पीजीआई में चल रही है इंटरनैशनल पीडियॉट्रिक ऐंड एडोलसेंट यूरोलॉजी वर्कशाप के अंतिम दिन डॉ.एमएस अंसारी ने दी।
कैसे करें इस्तेमाल :
- करी पत्ते को अच्छी तरह से धो लें।
- रोज सुबह खाली पेट आठ से दस पत्तियों का सेवन करें।
- समस्या के दिनों में यह प्रक्रिया रोजाना कर सकते हैं।
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संस्थान के यूरोलॉजी विभाग के डॉ. एमएस अंसारी ने बताया कि डायपर पहनने से बच्चों को एहसास ही नहीं होता कि कब उनको पेशाब पास हो रही है। बड़े होने पर भी वह बेड पर पेशाब कर देते है। इसलिए बच्चों को डायपर की ज्यादा आदत नहीं डालनी चाहिए। मेडिकल भाषा में इससे टॉइलेट ट्रेनिंग कहा जाता है। देर तक डायपर पहने रहने से बच्चों में संक्रमण की आशंका बनी रहती है। संक्रमण से पेशाब की थैली में पेशाब इकट्ठा होने लगता है। इससे पेशाब की नली और गुर्दा खराब हो सकता है। डॉ. एमएस अंसारी ने बताया कि यूरोलॉजी की ओपीडी में हर हफ्ते ऐसे तीन से चार केस आ रहे हैं।
गर्भस्थ की बीमारी का लगेगा पता
डॉ. एमएस अंसारी ने बताया कि गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में गर्भ में पल रहे शिशु के गुर्दे और पेशाब की नली में समस्या का पता लगाया जा सकता है। यह सामान्य अल्ट्रासाउंड से पता लग सकता है। बस रेडियॉलजिस्ट को ध्यान से देखने की जरूरत होती है। ऐसा करने से प्रसव के बाद बच्चों का समय पर इलाज किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जन्म के एक महीने बाद बच्चे की अल्ट्रासाउंड जांच होती है। इसके बाद रीनल टेस्ट होता है। अगर कोई दिक्कत निकलती है तो समय रहते सर्जरी करके शिशु को गुर्दे की बीमारी से बचाया जा सकता है।