द्वि-चक्रिकासन-1 :

विधि- पीठ के बल लेटकर हाथों के पंजे नितम्बों के नीचे रख श्वास रोककर एक पैर को पूरा ऊपर उठाकर घुटने से मोड़कर एड़ी नितम्ब के पास होकर गोलाकार (साइकिल चलाने की तरह) घुमाते रहें। इसी प्रकार दूसरे पैर से इस क्रिया को करें। पैरों को बिना जमीन पर टिकाये घुमाते रहें, पैरों से वृत्ताकृति बनायें, इस सम्पूर्ण क्रियाभ्यास को ‘द्वि-चक्रिकासन-1’ कहते हैं। 10 से लेकर यथाशक्ति 25-30 बार इसकी आवृत्ति करें। थक जाने पर शवासन में थोड़ी देर विश्राम करके इसी अभ्यास को विपरीत दिशा से दोहरायें।

द्वि-चक्रिकासन-2 :

विधि- इसी क्रिया के द्वितीय चरण में दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ते हुए घुटनों को छाती पर सटा दें, अब श्वास लेने तथा छोड़ने की क्रिया के साथ दोनों पैरों को (साईकिल के पैडल घुमाने की भाँति) वामावर्त्त घुमाइये, यही क्रिया दक्षिणावर्त्त में भी दोहराना द्वि-चक्रिकासन-2 कहलाता है।

कैसे करें इस्तेमाल :
  • करी पत्ते को अच्छी तरह से धो लें।
  • रोज सुबह खाली पेट आठ से दस पत्तियों का सेवन करें।
  • समस्या के दिनों में यह प्रक्रिया रोजाना कर सकते हैं।
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सावधानी- कमरदर्द, हृदयरोग, उच्चरक्तचाप और हर्निया से ग्रसित व्यक्ति इस दूसरी अवस्था का अभ्यास न करें।

लाभ-

A मोटापा घटाने के लिए यह सर्वोत्तम आसन है, नियमित रूप से 5 से 10 मिनट तक इसका अभ्यास करने से निश्चित ही अनावश्यक भार कम हो जाता है।

A उदर को सुडौल बनाता है, आँतों को सक्रिय करता है। कब्ज, मन्दाग्नि, अम्लपित्त, धरन आदि की निवृत्ति करता है।

A सम्पूर्ण शरीर में रक्त-संचारण को तेज करके रक्त शुद्धि करता है।

पादवृत्तासन-1 :

विधि- सीधे लेटकर दायें पैर को उठाकर शून्याकृति बनाते हुए घड़ी की दिशा में 5 से 10 आवृत्तियाँ करें। एक दिशा में घुमाने के बाद दूसरी दिशा में पैर को घड़ी की विपरीत दिशा (एंटी क्लॉकवाइज) में वृत्ताकार घुमायें, तब दूसरे पैर से भी ठीक इसी प्रकार अभ्यास करें। यह पूरी क्रिया ‘पादवृत्तासन-1’ कहलाती है।

पादवृत्तासन-2 : 

विधि- एक-एक पैर से करने के पश्चात् दोनों पैरों से एक साथ इस अभ्यास को करें, पैरों को ऊपर-नीचे, दायें एवं बायें चारों ओर जितना ले जा सकते हैं, उतना ले जाते हुए घुमायें। दोनों पैरों से दोनों दिशाओं से अर्थात् वामावर्त्त (क्लॉकवाइज) तथा दक्षिणावर्त्त (एंटी क्लॉकवाइज) घुमाने की क्रिया ‘पादवृत्तासन-2’ कहलाती है।

लाभ- जंडा, नितम्ब एवं कमर के बढ़े हुए मेद को निश्चित रूप से दूर करता है, तथा उदर को हल्का व सुडौल बनाता है। शरीर के सन्तुलन के लिए यह बहुत उपयोगी है।

अर्द्धहलासन :

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विधि- पीठ के बल लेटकर हथेलियां भूमि की ओर, पैर सीधे एवं पंजे मिले हुए व तने हुए हों। अब श्वास अन्दर भरकर पैरों को 90 डिग्री (समकोण) तक धीरे-धीरे ऊपर उठाकर कुछ समय तक इस स्थिति में स्थिर रहें, वापस आते समय धीरे-धीरे पैरों को नीचे भूमि पर टिकायें, झटके के साथ नहीं। कुछ विश्राम कर, फिर यही क्रिया करें, इसे ‘अर्द्धहलासन’ कहते हैं। इसे 3 से 6 बार करना चाहिए।

सावधानी-

A जिनको कमर में अधिक दर्द रहता हो, वे एक-एक पैर से क्रमश इस आसन का अभ्यास करें; दोनों पैर से एक साथ अभ्यास न करें।

लाभ-

A यह आसन आंतों को सबल एवं निरोग बनाता है, तथा कब्ज, गैस, मोटापा आदि को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।

A नाभि का डिगना, हृदयरोग, पेट दर्द एवं श्वासरोग में भी उपयोगी है। एक-एक पैर से क्रमश रुकने पर कमर दर्द में विशेष लाभप्रद है।

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