आयुर्वेद के अनुसार,पुदीना (dried mint) कफ और वात दोष को कम करता है, भूख बढ़ाता है। आप पुदीना का प्रयोग मल-मूत्र संबंधित बीमारियां और शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए भी कर सकते हैं। यह दस्त, पेचिश, बुखार, पेट के रोग, लीवर आदि विकार को ठीक करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है।

एसिडिटी और गैस की समस्या से राहत पाने के 5 घरेलू उपाय, जरूर आजमाएं
1) एक चम्मच अजवायन में चौथाई चम्मच नींबू का रस मिलाएं और इसे चाट लें। ऐसा करने से गैस में जल्द ही राहत मिलेगी।
2) अदरक के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक और भुना हुआ जीरा मिलाकर मिश्रण बनाएं और इसका सेवन करें। हो सके तो इस मिश्रण के ऊपर आधा ग्लास छाछ भी पीएं।
3) एक ग्लास गुनगुने दूध में 2 चम्मच एरंडी का तेल मिलाकर पीएं। ये गैस की समस्या में तुरंत राहत देगा।
4) चोकर सहित आटे की रोटी खाने से एसिडिटी और गैस में फायदा होता है।
5) एक ग्लास गन्ने का रस को गर्म करके उसमें थोड़ा सा नींबू का रस और सेंधा नमक डालें। अब इसे दिन में कम से कम 2 बार पीएं। ऐसा करने से भी एसिडिटी और गैस से राहत मिलती है।

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बारिश में भीगकर सर्दी का उपचार कराने से बेहतर है कि बारिश आने के पूर्व ही छाता लगाकर अपना बचाव कर लिया जाए।
रोगी होकर चिकित्सा कराने से अच्छा है कि बीमार ही न पड़ा जाए। आयुर्वेद का प्रयोजन भी यही है। स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी के रोग का शमन। आयुर्वेद की दिनचर्या, ऋतुचर्या, विहार से सम्बन्धित छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण सूत्रों को अपने दैनिक जीवन में सहज रूप से धारण कर हम अपने आपको स्वस्थ एवं निरोगी बनाए रख सकते हैं –
स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र:-
सदा ब्रह्ममुहूर्त (पातः 4-5 बजे) में उठना चाहिए। इस समय प्रकृति मुक्तहस्त से स्वास्थ्य, प्राणवायु, प्रसन्नता, मेघा, बुद्धि की वर्षा करती है।

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बिस्तर से उठते ही मूत्र त्याग के पश्चात उषा पान अर्थात बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा, रक्तचाप, नैत्र रोग, अपच सहित कई रोगों से हमारा बचाव करती है।
स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए। (जहाँ निषेध न हो)
स्नान के समय सर्वप्रथम जल सिर पर डालना चाहिए, ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है।

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दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नैत्रों को शीतल जल से धोना नेत्र दृष्टि के लिए लाभकारी है।

नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्र त्याग अवश्य करना चाहिए। यह आदत आपको कमर दर्द, पथरी तथा मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से बचाती है।

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सरसों, तिल या अन्य औषधीय तेल की मालिश नित्यप्रति करने से वात विकार,, बुढ़ापा, थकावट नहीं होती है। त्वचा सुन्दर , दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर पुष्ट होता है।

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शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम करना चाहिए।

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अपच, कब्ज, अजीर्ण, मोटापा जैसी बीमारियों से बचने के लिए भोजन के 30 मिनट पहले तथा 30 मिनट बाद तक जल नहीं पीना चाहिए। भोजन के साथ जल नहीं पीना चाहिए। घूँट-दो घूँट ले सकते हैं।

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दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहना चाहिए।

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भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

 

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