वातस्फीति क्या है?
वातस्फीति फेफड़ों से संबंधित एक स्थिति होती है जिसके कारण सांस फूलने लगती है। अंग्रेजी में इस रोग को एम्फसीमा (Emphysema) के नाम से जाना जाता है। जो लोग वातस्फीति से ग्रस्त होते हैं उनके फेफड़ों की हवा की थैलियां यानि कि एल्वियोली (Alveoli) क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। समय के साथ-साथ इन थैलियों की अंदरूनी दीवार क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और फिर फट जाती है। जिससे कई छोटी-छोटी थैलियों की जगह हवा की एक बड़ी थैली बन जाती है। इस स्थिति में फेफड़ों की सतह का क्षेत्र कम हो जाता है जिस कारण से आपके खून में पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा भी कम हो जाती है।
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वातस्फीति से ग्रस्त लोग जब सांस छोड़ते हैं तो उनके फेफड़ों की क्षतिग्रस्त थैलियों में पुरानी हवा फंसी रह जाती है जिससे नई और ऑक्सीजन युक्त हवा उनमें प्रवेश नहीं कर पाती।
वातस्फीति से ग्रस्त ज्यादातर लोगों को क्रोनिक ब्रोंकाइटिस भी होता है। क्रोनिक ब्रोंकाइटिस में फेफड़ों तक हवा पहुंचाने वाली नलियों (श्वसन नलियां) में सूजन, लालिमा व जलन हो जाती है, जिससे गंभीर खांसी पैदा हो जाती है।
एम्फसीमा और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस ये दो रोग हैं जो मिलकर क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोग (COPD) पैदा करते हैं। धूम्रपान करना सीओपीडी पैदा करने वाले मुख्य कारणों में से एक है। इलाज की मदद से सीओपीडी के बढ़ने की गति को कम किया जा सकता है लेकिन इसके कारण हुई क्षति को कम नहीं किया जा सकता है।
वातस्फीति का खतरा कब बढ़ जाता है?
वातस्फीति होने के जोखिम बढ़ाने वाले कारकों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
- सेकेंड हैंड स्मोक:
इसे सेकेंड हैंड स्मोक के अलावा पेसिव या इन्वायरमेंटल स्मोक के नाम से भी जाना जाता है। जब किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा पी गई सिगरेट या बीड़ी आदि से निकलने धुएं को आप अनजाने में सांस द्वारा खींच लेते हैं तो उसे सेकेंड हेंड स्मोक कहा जाता है। धूम्रपान करने वाले लोगों के पास रहना भी वातस्फीति विकसित होने के जोखिम को बढ़ाता है। - धूम्रपान करना:
जो लोग सिगरेट पीते हैं उनमें वातस्फीति विकसित होने की संभावनाएं अधिक होती हैं लेकिन सिगार पीने वाले लोग इसके प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। धूम्रपान करने वाले लोगों के लिए इसके जोखिम आमतौर पर उनके धूम्रपान किये गए सालों की संख्या और धूम्रपान की मात्रा के अनुसार बढ़ते हैं। - केमिकल या धूल आदि के संपर्क में आना:
यदि आप कुछ निश्चित प्रकार के केमिकल से निकलने वाले धुएं या भाप में सांस लेते हैं या फिर अनाज, कपास, लकड़ी और खनिज आदि की धूल में सांस लेते हैं तो आपके जोखिम बढ़ सकते हैं। यदि आप धूम्रपान करते हैं तो ये जोखिम और अधिक बढ़ सकते हैं। - उम्र:
वैसे तो वातस्फीति में फेफड़े धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होते हैं, लेकिन जिन लोगों को तंबाकू से संबंधित वातस्फीति होती है उनको अक्सर 40 से 60 साल की उम्र के बीच में इसके लक्षण महसूस होने लगते हैं।
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- घर के अंदर या बाहर के प्रदूषण के संपर्क में आना:
घर के अंदर के उत्तेजक पदार्थों में सांस लेना जैसे जलने वाले ईंधन से निकलने वाला धुंआ और घर के बाहर का प्रदूषण जैसे कार से निकलने वाले धुएं में सांस लेना आदि भी वातस्फीति के जोखिम को बढ़ाता है।
वातस्फीति (एम्फसीमा) के बचाव – Prevention of Emphysema in Hindi
वातस्फीति की रोकथाम कैसे की जाती है?
वातस्फीति से बचाव रखने के लिए धूम्रपान ना करें और धूम्रपान करने वालों से भी दूर रहें। यदि आप केमिकल के धुएं या धूल आदि में काम करते हैं तो अपने फेफड़ों को बचाने के लिए मास्क आदि पहनें।
वातस्फीति (एम्फसीमा) का परीक्षण – Diagnosis of Emphysema in Hindi
वातस्फीति का परीक्षण कैसे किया जाता है?
वातस्फीति को निर्धारित करने के लिए आपके डॉक्टर आपकी पिछली मेडिकल स्थिति के बारे में पूछेंगे और आपका शारीरिक परीक्षण करेंगें। डॉक्टर आपके रोग का परीक्षण करने के लिए कई प्रकार के टेस्ट लिख सकते हैं:
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इमेजिंग टेस्ट:
छाती का एक्स रे वातस्फीति के परीक्षण में और सांस फूलने के कारण का पता लगाने में मदद कर सकता है। लेकिन यदि आपको वातस्फीति है तब भी छाती का एक्स रे आपको सामान्य रिजल्ट दिखा सकता है।
सीटी स्कैन और एक्स रे दोनों को संयोजित करके एक ऐसी तस्वीर तैयार की जाती है जिसकी मदद से फेफड़ों को कई अलग-अलग दिशाओं से देखा जा सकता है। सीटी स्कैन, वातस्फीति का पता लगाने और उसका परीक्षण करने में भी मदद करता है। यदि आपके फेफड़ों की सर्जरी की जानी है या सर्जरी हो चुकी है तो भी आपका सीटी स्कैन किया जा सकता है।
लैब टेस्ट:
कलाई की एक रक्त वाहिका से खून का सेंपल लिया जाता है और उसकी जांच की जाती है। जिसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि फेफड़े कितने अच्छे से खून में ऑक्सीजन पहुंचा रहे हैं और कार्बन डाइऑक्साइड निकाल रहे हैं।
लंग फंक्शन टेस्ट:
ये नोनइनवेसिव (जिसमें चीरे या इंजेक्शन आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता) टेस्ट होते हैं। इनकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि आपके फेफड़े कितनी हवा को अपने अंदर भर सकते हैं और हवा कितने अच्छे से फेफड़ों में अंदर आ रही है और बाहर जा रही है। यह काफी आसान टेस्ट होता है जिसमें स्पायरोमीटर (Spirometer) नाम के एक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें आपको फूंक मारनी होती है।
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वातस्फीति (एम्फसीमा) का इलाज – Emphysema Treatment in Hindi
वातस्फीति का इलाज कैसे किया जाता है?
दवाएं:
आपके लक्षणों की गंभीरता के आधार पर डॉक्टर आपके लिए निम्न दवाएं लिख सकते है:
- ब्रोंकोडाईलेटर्स:
ये दवाएं संकुचित श्वसनमार्गों को खोलकर खांसी, सांस फूलना और सांस संबंधी अन्य समस्याओं को ठीक करने में मदद करती है। - सांस के द्वारा ली जाने वाली स्टेरॉयड दवाएं:
कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाओं को एरोसोल स्प्रे (Aerosol sprays) के रूप में लिया जाता है जो सूजन व लालिमा जैसी समस्याओं को कम करते हैं और सांस फूलने जैसी समस्याओं को ठीक करने में भी मदद करते हैं। - एंटीबायोटिक्स दवाएं:
यदि आपको एक्युट ब्रोंकाइटिस या निमोनिया जैसे बैक्टीरियल संक्रमण हैं तो इनका इलाज करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है।