अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहों में मरते हुए देखा है
टूटते-बिखरते, सिसकते, कसकते
रिश्तों का इतिहास,
दिल पे लिखा है बेहिसाब!
कौन सी कमी कहाँ रह जाती है
कि वे अस्तित्वहीन हो जाते हैं,
या एक अरसे की पूर्ण जिन्दगी जी कर,
वे अपने अन्तिम मुकाम पर पहुँच जाते हैं !
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मैंने देखे हैं कुछ रिश्ते धन-दौलत पे टिके होते हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे होते हैं-गहरा धोखा खाए होते हैं
कुछ आँसुओं से खारे और नम हुए होते हैं,
कुछ रिश्ते अभावों में पले होते हैं-
पर भावों से भरे होते है! बड़े ही खरे होते हैं !
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कुछ रिश्ते, रिश्तों की कब्र पर बने होते हैं,
जो कभी पनपते नहीं, बहुत समय तक जीते नहीं
दुर्भाग्य और दुखों के तूफान से बचते नहीं!
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स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं और गायब हो जाते हैं;
कुछ रिश्ते दूरियों में ओझल हो जाते हैं,
जाने वाले के साथ दूर चले जाते हैं !
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कुछ नजदीकियों की भेंट चढ़ जाते हैं,
कुछ शक से सुन्न हो जाते हैं !
कुछ अतिविश्वास की बलि चढ़ जाते हैं!
फिर भी रिश्ते बनते हैं, बिगड़ते हैं,
जीते हैं, मरते हैं, लड़खड़ाते हैं, लंगड़ाते हैं
तेरे मेरे उसके द्वारा घसीटे जाते हैं,
कभी रस्मों की बैसाखी पे चलाए जाते हैं!
पर कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो अनबोले होते हैं
अपनों से भी प्यारा सपनों से भी ज्यादा होते हैं
छू जाते मन को कुछ इस कदर अज़ीज़ बनकर
की उनकी चाहत हमारे बेक़रार कर जाते हैं !
जब सच्चा रिश्ता नजर आया तो यूं लगे
कृष्ण की बाँसुरी ने गीत गुनगुनाया है
आसमां में ईद का चाँद मुस्कराया है
या सूरज रात में ही निकल आया है
ऐसा रिश्ता सदियों में नजर आया हैं !
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ईद का चाँद रोज नहीं दिखता,
इन्द्रधनुष भी कभी-कभी खिलता है
इसलिए शायद – प्यारा खरा रिश्ता
सदियों में दिखता है, मुश्किल से मिलता है पर,
दिखता है, मिलता है, यही क्या कम है .. !
दुआ वो खुदा की जो मेरी मुकद्दर बनकर
दो कदम साथ चलने का हमसफ़र आया है
सीने से लगा लूँ जी को मना लूँ उस फरिस्ते को