शिशु को ठोस आहार खिलाना शुरू करने पर जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। इस समय बच्चे की डायट में सही विकास और पोषण के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों को चुनना और उन्हें सही ढंग से शामिल करना बहुत मुश्किल होता है।
शिशु के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों की सूची में कॉर्न यानी मकई को बहुत महत्व दिया गया है। अब बच्चे की डायट से कॉर्न को दूर रखना कितना सही या गलत है,
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वैसे तो कॉर्न शिशु के लिए सुरक्षित होता है लेकिन इसे आप बच्चे के पहले या शुरुआत ठोस आहार में शामिल नहीं कर सकते हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, बच्चे को शुरुआती ठोस आहार में अनाज, फल और मैश की हुई सब्जियां लेनी चाहिए।
यदि आपके परिवार में कभी किसी को कॉर्न एलर्जी रही है तो बच्चे के बड़े होने तक उसे कॉर्न न खिलाएं। वहीं, एक्जिमा होने पर भी शिशु को कॉर्न नहीं खिलाना चाहिए।
शिशु के आहार में इस तरह शामिल करें अनानास, मिलेगा दोगुना फायदा
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जी हां, शिशु एवं बच्चों को अनानास खिला सकते हैं। हालांकि, कुछ बच्चों को अनानास से एलर्जी भी होती है इसलिए इसे शिशु के आहार में शामिल करने से पहले एक बार पीडियाट्रिशियन (बाल रोग चिकित्सक) से सलाह जरूर कर लें।
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अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) ने साल 2012 में ठोस आहार को लेकर बनाए गए दिशा-निर्देशों में बदलाव किया था। उनके अनुसार 6 महीने के होने के बाद शिशु को अनानास खिला सकते हैं।
एएपी के अनुसार शिशु को कोई भी नई चीज खिलाने पर दो से तीन दिन तक इंतजार करना चाहिए कि कहीं उसे इससे एलर्जी तो नहीं हो रही।
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शिशु के संतुलित आहार में रोज कम से कम 100 ग्राम अनानास को शामिल करने से निम्न लाभ मिल सकते हैं :
100 ग्राम अनानास में 85 ग्राम पानी होता है इसलिए इस फल को खाने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है। इसके अलावा अनानास में फाइबर भी प्रचुरता में होता है जिससे बच्चों में कब्ज की समस्या नहीं रहती है।
अनानास में ब्रोमलिन होता है जिसका नियमित सेवन दिल को स्वस्थ रखता है। ये खून के थक्कों को कम करता है और धमनियों की दीवारों से प्लाक को हटाता है।अनानास में मौजूद ब्रोमलिन दर्द निवारक गुण भी रखता है। इससे शिशु को किसी भी तरह के दर्द से आराम मिल सकता है। ब्रोमलिन का इस्तेमाल कई सूजन और ऑटो-इम्यून बीमारियों के इलाज के लिए बनने वाली दवाओं में भी किया जाता है।
रिसर्च की मानें मो ब्रोमलिन ई.कोलाई जैसे बैक्टीरिया से लड़ने में भी मदद करता है। इससे दस्त को भी कम किया जा सकता है। अनानास के जूस से पेट के कीड़ों को खत्म किया जा सकता है।
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अन्य खाद्य पदार्थों एवं फलों की तरह अनानास खाने के भी कुछ नुकसान हो सकते हैं, जैसे कि :
कच्चा अनानास खाने से टॉक्सिसिटी हो सकती है। बच्चों के लिए इसे पचाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। अनानास में मौजूद एसिड की वजह से बच्चे के मुंह में रैशेज हो सकते हैं। इसलिए 6 महीने के होने के बाद ही शिशु के आहार में अनानास को शामिल करना चाहिए।यह भी पढ़ें : जानिए बच्चों को टोफू खिलाने की सही उम्र और फायदों के बारे में
आप बच्चे को केले, नाशपाती, शकरकंद या क्रीम के साथ मैश कर के खिला सकते हैं। अगर अनानास सख्त है तो उसे भाप में अच्छी तरह से पका लें। बच्चों को कोई भी चीज मैश कर के खिलानी सबसे सही रहती है।
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6 महीने के होने के बाद ही शिशु को कॉर्न खिला सकते हैं। हालांकि, अगर आपको एलर्जी का डर है तो बेहतर होगा कि आप एक साल की उम्र के बाद ही बच्चे कॉर्न खिलाएं। वहीं कॉर्न को पचाना भी मुश्किल होता है इसलिए जब तक शिशु का पाचन तंत्र मजबूत नहीं होता, तब तक उसे कॉर्न न खिलाएं।
6 महीने के बच्चे को कॉर्न प्यूरी के रूप में दें। 18 से 24 महीने के बच्चे को क्रीमी कॉर्न खिला सकते हैं। और दो साल के बाद जब बच्चे के दांत आ जाएं तो आप उसे मक्के के दाने चबाने को दे सकते हैं।
मक्का बहुत ज्यादा पौष्टिक होता है इसलिए इसे किसी अन्य चीज के साथ मिलाकर खिलाने की जरूरत नहीं है।
शिशु की डायट में कब और कितना नमक डालना चाहिए
6 महीने के होने के बाद शिशु को ठोस आहार देना शुरू किया जाता है। इस समय बच्चे के खाने में नमक की जरूरत नहीं होती है क्योंकि उसे खिलाए जा रहे फूड में पहले से ही कुछ मात्रा में नमक होता है।
अगर आप खाने में नमक मिलाना ही चाहती हैं या नमक के बिना बच्चा खाने से मना कर देता है तो आप खाना बनाते समय एक चुटकी नमक डाल सकती हैं। एक साल की उम्र तक बच्चे को सिर्फ एक ग्राम नमक की जरूरत होती है।
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एक साल का होने के बाद आप बच्चे के खाने में नमक डालना शुरू कर सकते हैं। इस समय बच्चा स्तनपान छोड़ रहा होता है इसलिए इस दौरान आपको उसके भोजन की मात्रा को बढ़ाना होगा। इतने छोटे बच्चे को रोज 2 ग्राम नमक दे सकती हैं और इनके भोजन में नमक की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
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इस उम्र के बच्चों के खाने में नमक की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान बच्चों की खुराक बढ़ जाती है और वो पहले से ज्यादा खाना खाते हैं। वहीं इतने बड़े बच्चों की खाने में स्वाद की डिमांड भी बहुत रहती है। 4 से 6 साल की उम्र के बच्चों को रोज 3 ग्राम नमक लेना चाहिए।
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अब इस उम्र तक बच्चों के शरीर की डिमांड भी बढ़ जाती है। उन्हें पढ़ाई, खेलूकूद और अन्य एक्टिविटीज के लिए ज्यादा एनर्जी और खाने की जरूरत होती है। इस आप बच्चों के खाने में धीरे-धीरे नमक की मात्रा बढ़ा सकते हैं। इन्हें दिन में 5 ग्राम नमक दे सकते हैं।
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शिशु के आहार में अधिक नमक डालने से उसकी किडनी को नुकसान पहुंच सकता है क्योंकि बच्चों की किडनी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई होती है। बेबी फूड में नमक डालने से बच्चों को नमकीन खाना ज्यादा पसंद आने लगता है जाे कि सही नहीं है।
इस आदत का असर बच्चों को आगे चलकर भी भुगतना पड़ सकता है।
बच्चों की डायट में नमक की मात्रा को कम करने के लिए उन्हें नमकीन स्नैक्स जैसे कि बिस्किट या चिप्स आदि देने से बचें। इसकी जगह आप उन्हें कम नमक वाले स्नैक्स खिलाएं जैसे कि सूखे मेवे और फल आदि। ये पौष्टिक भी होते हैं और नमक एवं शुगर की मात्रा भी इनमें कम होती है।
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कॉर्न में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, थायमिन, नियासिन और फोलेट होता है जो नसों के विकास और मेटाबोलिज्म को दुरुस्त कर नई कोशिकाओं के विकास में मदद करते हैं। मक्का एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है जिससे शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों को सुरक्षा मिलती है।
फाइबर से युक्त होने के कारण मक्का खाने से कब्ज नहीं होती है। विटामिन ए से युक्त कॉर्न बीटा-कैरोटीन का भी बेहतरीन स्रोत है जिससे शिशु की आंखें तेज होती हैं। कॉर्न में फॉस्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम, और आयरन भी होता है।
फॉस्फोरस हड्डियों को स्वस्थ रखता है और पोटैशियम एवं मैग्नीशियम मांसपेशियों और नसों के विकास के लिए जरूरी है। आयरन से शिशु के मस्तिष्क के विकास में मदद मिलती है।
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मक्के के दाने बच्चे के गले में अटक सकते हैं इसलिए एक साल का होने के बाद ही बच्चे को मक्का खिलाना शुरू करें। मक्के के ताजे दाने ही खाएं। वहीं अगर बच्चे को एक्जिमा, अस्थमा या फूड एलर्जी है तो डॉक्टर से बात करने के बाद ही उसकी डायट में कॉर्न को शामिल करें।
यदि कॉर्न खाने के बाद बच्चे में कोई एलर्जी जैसे कि रैशेल या सांस लेने में दिक्कत जैसा कोई भी लक्षण दिख रहा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।