लीवर हमारे शरीर का एक प्रमुख अंग है। यह हमारे शरीर में भोजन पचाने से लेकर पित्त बनाने तक का काम करता है। लीवर शरीर को संक्रमण से लड़ने, रक्त शर्करा या ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने, शरीर से विषैले पदार्थो को निकालने, फैट को कम करने तथा प्रोटीन बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। अत्यधिक मात्रा में खाने, शराब पीने एवं अनुचित मात्रा में फैट युक्त भोजन करने से फैटी लीवर जैसे रोग होने की संभावना रहती है। आप घर पर ही फैटी लीवर का इलाज (Fatty Liver Treatment) कर सकते हैं।

कुछ लोग सोचते हैं फैटी लीवर केवल शराब या अन्य मादक चीजों का सेवन करने से ही होता है और फैटी लीवर का इलाज (fatty liver ka ilaj)घर में करना संभव नहीं है। सबसे पहले तो यह जान लें कि फैटी लीवर की बीमारी शराब के साथ-साथ मोटापे और खाने की अनुचित आदतों वाले लोगों में भी यह हो सकता है। दूसरी बात यह जान लें कि फैटी लीवर का उपचार आप घर पर भी कर सकते हैं। फैटी लीवर का इलाज (fatty liver ka ayurvedic ilaj) करने के लिए घरेलू नुस्ख़े बहुत काम आते हैं। इससे कुछ हद तक फैटी लीवर के नुकसान से लीवर को कुछ हद तक बचाया जा सकता है।

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पारिवारिक जीवन तभी सुखी होगा जब आपअच्छे से पार्टनर को खुश रखेंगे आपके शरीर में स्टेमिना यानि ताकत की कमी है तो आयुर्वेदिक उपचार कराए इन सब समस्याओं का जड़ से इलाज आयुर्वेदिक दवाओं से किया जाता है घर बैठे डॉ नुस्खे वीर्य शोधन चूर्ण ऑर्डर करने के लिए लिंक पर क्लिक करें   https://cutt.ly/3lBq57d

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फैटी लीवर क्या है? (What is Fatty liver?)

अगर सबसे पहले समझते हैं कि फैटी लीवर क्या है। लीवर की कोशिकाओं में अधिक मात्रा में फैट जमा हो जाता है। लीवर में वसा की कुछ मात्रा का होना तो सामान्य बात है लेकिन फैटी लीवर बीमारी व्यक्ति को तब होती है, जब वसा की मात्रा लीवर के भार से दस प्रतिशत अधिक हो जाती है। ऐसी स्थिति में लीवर सामान्य रूप से कार्य करने में असमर्थ हो जाता है तथा अनेक लक्षणों को उत्पन्न करता है। इसके बाद फैटी लीवर का इलाज (fatty liver ka ayurvedic ilaj) कराने की जरूरत पड़ती है।

सामान्यत इसके लक्षण (fatty liver ke lakshan)देर में देखने को मिलते है लेकिन लम्बे समय तक लीवर में अधिक वसा का जमा होना नुकसानदायक बन जाता है। आम तौर पर 40-60 वर्ष की आयु में यह देखने को मिलता है। आयुर्वेद में लीवर (fatty liver in hindi) का संबंध पित्त से बताया गया है यानि पित्त के दूषित होने पर लीवर रोग ग्रस्त हो जाता है एवं भलीभाँति अपना कार्य नहीं कर पाता।

दूषित पित्त ही फैटी लीवर जैसे रोगों को जन्म देता है। अनुचित खान-पान से लीवर में विषाक्त तत्व जमा होने लगते है जिस कारण लीवर को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है। जिसके कारण लीवर में सूजन आ जाती है जो फैटी लीवर का उपचार कराने की जरूरत पड़ जाती है।

फैटी लीवर दो प्रकार के होते हैं-

1- एल्कोहलिक फैटी लीवर डिज़ीज (Alcoholic Fatty Liver disease)-शराब का अत्यधिक सेवन करने वालों में होता है। एल्कोहॉल का अधिक सेवन लीवर पर फैट जमा होने का एक कारण है। शराब का ज्यादा सेवन करने से लीवर में सूजन आ सकती है तथा लीवर क्षतिग्रस्त हो सकती है।

2- नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर डिज़ीज (Non-Alcoholic Fatty liver disease or NAFLD)-उच्च वसायुक्त भोजन एवं अनुचित जीवनशैली के कारण व्यक्ति में मोटापे एवं डायबिटीज की समस्या होने लगती है जो कि फैटी लीवर होने में बड़े कारण है। शराब न लेने पर भी इन स्थितियों में फैटी लीवर होने की पूरी संभावना है।

फैटी लीवर होने पर अन्य रोग होने की संभावना भी होती है। नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर डिज़ीज के चार चरण होते हैं।

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  • सामान्य फैटी लीवर और स्टियाटोसिस (Normal fatty liver and steatosis)-इस चरण में लीवर में वसा का जमा होना शुरू हो जाता है किन्तु किसी भी तरह की सूजन नहीं होती। इस अवस्था में किसी भी तरह के लक्षण (Fatty Liver Symptoms in Hindi) दिखाई नहीं देते तथा केवल उचित आहार के सेवन से यह ठीक हो जाता है।
  • नॉन-एल्कोहलिक स्टियाटोहेपाटाइटिस (Non-alcoholic steatohepatitis)-इस अवस्था में वसा जमे हुए लीवर में सूजन आना शुरू हो जाती है। लीवर में जब सूजन आ जाता है तब वह क्षतिग्रस्त ऊतकों या टिशु को ठीक करने की कोशिश करते है, जितने ज्यादा टिशु वहाँ पर क्षतिग्रस्त होते है, लीवर उतनी तेजी से उनको ठीक करने की कोशिश करता है और इस प्रकार सूजन वाले टिशुओं में घाव हो जाती है। इस अवस्था में जब घाव वाले टिशु वहाँ पर विकसित होने लगते है तब फिब्रोसिस होने की अवस्था आती है।
  • फिबरोसिस (Fibrosis)-यह तब होता है जब लीवर और उसके आस-पास के ब्लड सेल्स या  रक्तवाहिकाओं में स्थायी रूप से घाव वाले ऊतक या टिशुएं बनने लगते हैं। इस अवस्था में लीवर कुछ हद तक सामान्य रूप से कार्य करता रहता है। इस समय उपचार करने पर लीवर में आगे की क्षति होने से रोका जा सकता है और जो क्षति हुई है वह सामान्य अवस्था में आ सकती है। हालांकि समय के साथ ये घाव वाले ऊतकों के जगह स्वस्थ ऊतक बन जाते है। इस कारण से लीवर का कार्य प्रभावित होता है तथा सिरोसिस हो सकता है।
  • सिरोसिस (Cirrhosis)-इस अवस्था में लीवर सामान्य रूप से कार्य करना बंद कर देता है तथा त्वचा एवं आँखों का पीलापन जैसे लक्षण (Fatty Liver Symptoms in Hindi) दिखने लगते है। इस समय लीवर में बने जिन ऊतकों में घाव हो जाता है उनको हटाना मुश्किल हो जाता है। ज्यादातर लोगों में सामान्य फैटी लीवर (steatosis) ही पाया जाता है जो कि आहार योजना में बदलाव करके सामान्य अवस्था में लाया जा सकता है, फिबरोसिस तथा सिरोसिस को विकसित होने में 3-4 वर्ष लगते है।

फैटी लीवर के लक्षण (Fatty Liver Symptoms in Hindi)

इसी तरह अगर आपको फैटी लीवर का उपचार करना है तो फैटी लीवर के लक्षणों को शुरुआती अवस्था में समझना होगा। हालांकि यह मुश्किल होता है क्योंकि बहुत कम लोगों को फैटी लीवर के लक्षणों (fatty liver ke lakshan)के बारे में पता होता है इसलिए शारीरिक अवस्था बहुत ज्यादा खराब हो जाने के बाद बीमारी का पता चलता है। चलिये कुछ आम लक्षणों के बारे में पता लगाते हैं-

  • पेट के दाएँ भाग के ऊपरी हिस्से में दर्द
  • वजन में गिरावट
  • कमजोरी महसूस करना
  • आँखों और त्वचा में पीलापन दिखाई देना
  • भोजन सही प्रकार से हजम नहीं होना जिसके कारण एसिडिटी का होना
  • पेट में सूजन होना

 

बच्चों में फैटी लीवर-बच्चों में फैटी लीवर बहुत कम देखा जाता है। इनमें नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर डिज़ीज के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं देखे जाते है परन्तु यह मोटापे से ग्रस्त बच्चों में या जिनमें जन्म से ही चयापचय विकार (Metabolic disorder) पाया जाता है। जंक फूड, चॉकलेट, चिप्स का अधिक सेवन तथा शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण ये समस्या आजकल बच्चों में बढ़ रही है। सबसे पहले आप कोशिश करें कि बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त ना हो, लेकिन अगर ऐसी स्थिति आ गई तो आप फैटी लीवर का इलाज करने के लिए इन लक्षणों की पहचान कर सकते हैं।

फैटी लीवर से बचने के उपाय (How to Prevent Fatty liver in Hindi)

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आयुर्वेदीय केवल औषधियों से ही नहीं उचित आहार एवं जीवनशैली से भी रोग शान्त करता है। आयुर्वेद शरीर में उपस्थित तीन दोष वात, पित्त एवं कफ के सिद्धान्त पर काम करता है। फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए इस बात पर उपचार का प्रभाव निर्भर करता है। आयुर्वेदीय उपचार प्राकृतिक रूप से असंतुलित दोषों को सामान्य अवस्था में लेकर आता है। यह एलौपैथिक दवाओं की तरह लक्षणों को कुछ समय के लिए दबाता नहीं अपितु विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर कर तथा दोषों को संतुलित कर रोग को जड़ से मिटाता है। परंतु आयुर्वेदीय उपचार के समय रोगी को उचित जीवनशैली एवं निर्दिष्ट आहार-विहार का ही सेवन करना चाहिए नहीं तो उसे चिकित्सा का लाभ नहीं मिल सकता। उचित खान-पान एवं दिनचर्या आयुर्वेदीय उपचार का हिस्सा है।

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