आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ “जीवन का विज्ञान” है। यह स्वास्थ्य की एक ऐसी समग्र प्रणाली है जिसका प्राचीन काल से पालन किया जा रहा है। आयुर्वेद के अनुसार, केवल बीमारियों या रोगों से मुक्ति ही स्वास्थ्य नहीं है, बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन की स्थिति है। आयुर्वेद के प्राचीन ऋषि, आचार्य सुश्रुत ने स्वस्थ व्यक्ति को परिभाषित किया है। उनके अनुसार, ऐसा व्यक्ति जिसमें दोष (देहद्रव जो शरीर को बनाते हैं), अग्नि (पाचन और चयापचय की प्रक्रिया), धातु (शरीर के ऊतक), मल (मल मूत्र), क्रिया (शारीरिक कार्य) संतुलित है और जो एक संतुलित मन और आत्मा के साथ खुश है, वही व्यक्ति स्वस्थ है।

आयुर्वेद इस विश्वास को मानता है कि उपचार का मार्ग शरीर और मस्तिष्क में संतुलन स्थापित करता है। इस प्रकार, आयुर्वेदिक उपचार में बीमारियों को रोकने के लिए व्यक्ति की जीवन शैली और खानपान की आदतों को बदलने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, साथ ही साथ दोषों में संतुलन बहाल करने के लिए शमन चिकित्सा (शांति या दर्दनाशक उपचार) और शोधन चिकित्सा (शुद्धि उपचार) भी की जाती है।

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हमें उम्मीद है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा या आयुर्वेदिक इलाज के संबंध में आपके मन में उठने वाले कई सवालों के जवाब इस लेख में प्राप्त हो जायेंगे।

इस लेख में आयुर्वेद क्या है, आयुर्वेद के नियम, आयुर्वेदिक इलाज के फायदे, आयुर्वेदिक उपचार के प्रकार, आयुर्वेदिक दवा कैसे बनती है, आयुर्वेदिक दवा लेने के नियम, आयुर्वेदिक दवा का असर, आयुर्वेदिक दवा में परहेज के साथ आयुर्वेदिक इलाज की संपूर्ण जानकारी दी गयी है।

 

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  1. आयुर्वेद क्या है? – Ayurveda kya hai in hindi
  2. आयुर्वेद का इतिहास – Ayurved ka itihas
  3. आयुर्वेद के नियम – Ayurved ke sutra
  4. आयुर्वेदिक उपचार के फायदे – Ayurveda ke fayde
  5. आयुर्वेदिक इलाज के प्रकार – Ayurvedic upchar ke prakar
  6. आयुर्वेदिक दवा के बारे में जानकारी – Ayurvedic medicine ki jankari in hindi
    • आयुर्वेदिक दवा कैसे बनती है? – Ayurvedic dawa kaise banti hai
    • आयुर्वेदिक दवा कैसे काम करती है? – Ayurvedic dawa kaise kaam karti hai
    • आयुर्वेदिक दवा कैसे लें – Ayurvedic medicine lene ka tarika
    • आयुर्वेदिक दवा के नुकसान – Ayurvedic dawa ke side effects in hindi
  7. आयुर्वेद में परहेज – Ayurvedic dawa ke parhej

आयुर्वेद क्या है? – Ayurveda kya hai in hindi

आयुर्वेद को चिकित्सा की सबसे प्राचीन और प्रमाणित उपचार प्रणाली माना जाता है, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। स्वस्थ या रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए आयुर्वेद का जो समग्र दृष्टिकोण है, उसकी किसी भी अन्य चिकित्सा विज्ञान से तुलना नहीं की जा सकती है। व्यक्ति को रोग से बचाना और स्वस्थ बनाए रखना आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य रहा है। भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का दैवीय प्रचारक माना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं में उन्हें स्वास्थ्य और धन प्रदान करने वाले देवता का दर्जा प्रदान किया गया है।

आयुर्वेद इस तथ्य को समझता है कि प्रत्येक व्यक्ति अलग है और परिणामस्वरूप, प्रत्येक व्यक्ति का उत्तम स्वास्थ्य की ओर जाने का मार्ग भी अलग होता है। आयुर्वेद व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा को एक संपूर्ण इकाई के रूप में मानता है और इस आधार पर काम करता है कि मन और शरीर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। शरीर और मन एक साथ मिलकर बीमारी को दूर कर सकते हैं।

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आयुर्वेद का इतिहास – Ayurved ka itihas

आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक समृद्ध इतिहास रहा है। यह भारत की पारंपरिक चिकित्सा और दुनिया में स्वास्थ्य सेवा की सबसे पुरानी प्रणाली है। यह एक निवारक और उपचारात्मक दोनों प्रकार की विधियों से युक्त प्रणाली है जिसका प्रयोग 5000 वर्षों से भी अधिक समय से किया जा रहा है। मूल रूप से आयुर्वेद का ज्ञान याद रख कर पीढ़ी दर पीढ़ी एक परंपरा के रूप में साझा किया जाता रहा। आयुर्वेद को संस्कृत में 5,000 साल पहले वेद नामक पवित्र ग्रंथों में दर्ज किया गया था।

आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से उपलब्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा की पुस्तकें, न केवल विस्तृत प्रक्रियात्मक निर्देश प्रदान करती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि समय के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सा कैसे विकसित हुई। आयुर्वेद के बारे में वर्तमान ज्ञान मुख्य रूप से “बृहत् त्रयी” नामक तीन महान ग्रंथों पर आधारित है, जिनमें “चरक संहिता”, “सुश्रुत संहिता” और “अष्टांग हृदय” शामिल हैं। इन पुस्तकों में उन मूल सिद्धांतों और नियमों का वर्णन किया गया है जिनसे आधुनिक आयुर्वेद विकसित हुआ है।

आयुर्वेद के नियम – Ayurved ke sutra

आयुर्वेद का सिद्धांत है कि लोग एक विशिष्ट अवस्था के साथ पैदा होते हैं, जिसे प्रकृति कहा जाता है। गर्भाधान के समय स्थापित प्रकृति को भौतिक और मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के एक अनोखे संयोजन के रूप में देखा जाता है जो प्रत्येक व्यक्ति के कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है।

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जीवन भर, व्यक्ति की अंतर्निहित प्रकृति समान रहती है। हालांकि, व्यक्ति की प्रकृति दिन और रात, मौसमी बदलाव, आहार, जीवन शैली तथा विभिन्न आंतरिक, बाहरी व पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती रहती है। आयुर्वेद बीमारी से बचाव पर बहुत जोर देता है। इसके लिए दैनिक और मौसमी आधार पर उचित आहार नियम के माध्यम से स्वास्थ्य बनाए रखने की सलाह देता है, जिससे व्यक्ति की प्रकृति में संतुलन बना रहता है।

आयुर्वेद कहता है कि तीन गुण होते हैं जिनसे व्यक्ति की प्रकृति की विशेषताएं निर्धारित होती हैं। इन तीन गुणों को “दोष” कहा जाता है। इन दोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है। तीनों गुणों के व्यक्ति के शारीरिक कार्यों पर विशेष प्रभाव होते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा के विद्वानों का मानना ​​है कि प्रत्येक व्यक्ति में तीन दोषों का एक नपा-तुला संतुलन है। व्यक्तिगत दोष लगातार परिवर्तित होते रहते हैं। ये व्यक्ति के भोजन, व्यायाम और अन्य कारकों से प्रभावित होते हैं।

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विद्वानों का यह भी मानना ​​है कि किसी दोष के असंतुलन से उस दोष से संबंधित लक्षण उत्पन्न होते हैं, ये लक्षण किसी अन्य दोष के असंतुलन से पैदा होने वाले लक्षणों से भिन्न होते हैं। कई कारक जैसे खराब भोजन, बहुत कम या बहुत अधिक शारीरिक अथवा मानसिक तनाव, केमिकल्स या रोगाणु आदि दोषों में असंतुलन का कारण बन सकते हैं।

दोषों में संतुलन की तरह ही, सात धातु या सप्तधातु में एक संतुलित स्थिति व्यक्ति के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए महत्वपूर्ण पैरामीटर है। ये धातु शरीर की ऊतक प्रणाली है और सात धातु में से प्रत्येक का परस्पर संबंध होता है। इनको रस धातू (प्लाज्मा और लसीका तरल पदार्थ, स्तन ग्रंथियों और इनके तरल पदार्थ तथा मासिक धर्म प्रवाह से बना है), रक्त धातू (लाल रक्त कोशिकाओं, रक्त वाहिकाओं और मांसपेशियों के टेंडन से बना है), मांस धातू (मांसपेशियों और त्वचा से बना है), मेद धातू (वसा, संयोजी ऊतकों और त्वचा के नीचे के वसायुक्त ऊतकों से बना है), अस्थि धातू (हड्डियों और दांतों से बना है), मज्जा धातू (तंत्रिका ऊतकों और अस्थि मज्जा से बना है), शुक्र धातू (प्रजनन द्रव्यों से बना है) के नाम से जाना जाता है।

प्रत्येक धातु को पोषण आहार रस (पोषक तत्वों) से मिलता है, जो फिर अगले धातु को दिया जाता है। प्रत्येक धातु शरीर से विशिष्ट अपशिष्ट उत्पादों जैसे कि खराब सांस, आँसू, श्लेष्म और पाचन पित्त को बाहर निकालता है। धात्वग्नि (चयापचय ऊर्जा) में धातु अपने कार्य का फैसला करते हैं।

सभी धातु तीन में से किसी एक दोष द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, कफ दोष रस, मांस, मेद और शुक्र धातुओं को नियंत्रित करता है। पित्त दोष मज्जा और रक्त धातुओं को नियंत्रित करता है और वात दोष अस्थि धातु को नियंत्रित करता है।

ओजस सभी धातुओं का अंतिम सार है और हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का आधार है। यह शरीर के हर हिस्से में व्याप्त है। ओजस कम होने के कारण चिंता, भय, खुशी में कमी, खराब रंगत, संवेदी अंग में दर्द, दुर्बलता, प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी विकार जैसे लक्षण होते हैं।

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आयुर्वेदिक उपचार के फायदे – Ayurveda ke fayde

वैसे तो आयुर्वेद का सबसे बड़ा लाभ यही है कि इससे रोगों का निवारण हो सकता है। लेकिन आयुर्वेदिक इलाज के कुछ विशेष फायदे भी होते हैं, जैसे:

  • आयुर्वेद से लोगों को यह जानने में मदद मिलती है कि किस प्रकार का भोजन, रंग, सुगंध, आवाज और स्पर्श उनके शरीर और मन में संतुलन और सामंजस्य की स्थिति पैदा करता है। जब शरीर और मन सामंजस्य में होते हैं, तो शरीर की सामान्य अवस्था बहाल होती है और यह स्वस्थ हो जाता है।
  • आयुर्वेदिक चिकित्सा का मुख्य लाभ यह भी है कि इनमें कोई हानिकारक तत्व नहीं होते हैं और इनका उपयोग करना काफी सुरक्षित होता है।
  • आयुर्वेद हजारों वर्षों से एक भरोसेमंद और प्रामाणिक उपचार बना हुआ है। इसलिए अन्य उपलब्ध चिकित्सा विकल्पों की तुलना में आयुर्वेद के पास रोगों के इलाज का सबसे अधिक अनुभव है। यह भी इसका एक बहुत बड़ा लाभ है।

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आयुर्वेदिक इलाज के प्रकार – Ayurvedic upchar ke prakar

आयुर्वेद अब सबसे अधिक मान्यता प्राप्त उपचार में से एक है। पूरी दुनिया में इस वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का व्यापक रूप से अभ्यास किया जा रहा है। आयुर्वेद की कुछ प्रचलित तकनीक ध्यान, योग, जप, प्राणायाम, पंचकर्म और जड़ी-बूटियाँ हैं, ये व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं। चाहे आप आयुर्वेद के किसी भी चिकित्सा विशेषज्ञ के पास जाए, वे निवारक और उपचारात्मक दोनों प्रकार के दृष्टिकोण अपनाते हैं।

निवारक उपचार:
यह दृष्टिकोण व्यक्ति को स्वस्थ और दीर्घायु बनाए रखने का प्रयास करता है। निवारक चिकित्सा प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को परिभाषित करके दैनिक तथा मौसमी आधार पर नियम निर्धारित करती है। इस तरह यह व्यक्ति के तीनों दोषों के संतुलन को समर्थन देने और उनको संतुलन में रखने पर जोर देती है।

ये नियम आहार और व्यायाम से लेकर हर्बल थेरेपी, मालिश, ध्यान, सामाजिक व्यवहार और सकारात्मक संबंधों तक सभी क्षेत्रों पर आधारित होते हैं।

उपचारात्मक इलाज:
ये उपचार व्यक्ति को कोई बीमारी हो चुकी हो तो उसको ठीक करने की कोशिश करते हैं। ऐसा निम्नलिखित तरीकों में से एक या अधिक का उपयोग करके किया जा सकता है:

  • आंतरिक उपाय, जिसमें शोधन (डिटॉक्सिफिकेशन) और शमन (दर्द निवारक उपचार के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीके) शामिल हैं।
  • बाहरी उपाय, स्नेहन (तेल से उपचार), स्वेदन (हर्बल भाप का उपयोग करके भाप चिकित्सा) और हर्बल पेस्ट के उपयोग आदि। (और पढ़ें – भाप लेने के फायदे)
  • सर्जिकल तरीके, इनमें ऊतकों, अंगों और किसी भी हानिकारक शारीरिक वृद्धि को हटाना शामिल है।
  • मानसिक और आध्यात्मिक उपचार, जिसे दिव्य चिकित्सा कहा जाता है।
  • हर्बल उपाय, जिसमें रस शास्त्र (विभिन्न हर्बल और शुक्ष्म मात्रा में धातु के मिश्रण का उपयोग) शामिल हैं।

आयुर्वेद में पंचकर्म सबसे महत्वपूर्ण उपचार प्रक्रिया होती है। यह आयुर्वेद की एक शोधन प्रक्रिया है, जिसमें शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर के त्रिदोषों में संतुलन की स्थिति को प्राप्त करने के लिए पांच क्रियाएं या तकनीक अपनाई जाती है। पंचकर्म एक बहुत प्रभावी उपचार विधि है। हालांकि, यह विधि केवल स्वस्थ बलवान लोगों में ही की जाती है और बहुत बीमार या कमजोर लोगों के लिए यह उचित नहीं है। पंचकर्म मानसिक कार्यों, पाचन प्रक्रिया और ऊतक चैनलों की बहाली और उपचार को बढ़ावा देता है।

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मर्दाना शक्ति को बढ़ाए

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आयुर्वेदिक दवा के बारे में जकारी – Ayurvedic medicine ki jankari in hindi

आयुर्वेदिक दवाएं दुनिया की सबसे पुरानी दवाइयों की प्रणाली में से एक है। इनके उपयोग की शुरुआत भारत से हुई और हजारों वर्षों में ये धीरे-धीरे पूरी दुनिया का भरोसा जितने में कामयाब रही। आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले कई उत्पादों और प्रथाओं का उपयोग आधुनिक इलाज के साथ-साथ सहायता के रूप में भी किया जाता है, उदाहरण के लिए, जड़ी बूटियां, मालिश और विशेष आहार आदि।

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