दमा का प्रकोप विश्व की जनसंख्या पर बढ़ता जा रहा है. रोज़मर्रा उपयोग होने वाली कीटनाशक दवायें इस रोग में अभिवृद्धि कर रही हैं. आयुर्वेद के अनुसार यह रोग इसकी गंभीरता और लक्षणों के हिसाब से पाँच प्रकार का है जो कि तीन तत्वों (वायु, अग्नि, जल) के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है.
- वायु तत्व के असंतुलन से शुष्क अथवा ड्राइ-टाइप (dry-type) दमा उत्पन्न होता है.
- अग्नि-तत्व के असंतुलन से संक्रमण अथवा इन्फेक्षन -टाइप (infection-type) दमा उपार्जित होता है.
- जल तत्व के असंतुलन से संकुलन अथवा कंजेस्षन-टाइप (congestive-type) दमा उत्पन्न होता है.
ड्राइ-टाइप अस्थमा (Dry-type asthma): यह उन व्यक्तियों में पाया जाता जिनमें त्वचा शुष्क हो, जिनका संगठन पतला और जिनमें क़ब्ज़ की शिकायत पाई जाती है.
इन्फेक्षन-टाइप अस्थमा (Infection-type asthma): यह पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति जिनमें सराइयसिस (psoriasis) और चर्म रोग की संभावना अधिक होती है तथा जो लोग में ब्रॉंकाइटिस से ग्रस्त हों, उनमें पाया जाता है.
कंजेस्षन-टाइप अस्थमा (Congestion-type asthma): यह गठीले शरीर वाले लोगों में पाया जाता है जिनकी हड्डियाँ मज़बूत हों अतएव जो सर्दी-खाँसी जल्दी ही प्रभावित हो जाते है और जिनके शरीर में जल का अवरोधन (water-retention) होने की प्रवृत्ति अधिक होती है.
अस्थमा के लक्षण व्यक्ति की संरचना पर निर्भर करते हैं. यदि इसका इलाज समय पर ना हो तो यह बढ़ जाता है और रोगी को हस्पताल में दाखिल करने की नौबत आ जाती है. इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को शारीरिक काम करने में दिक्कत अनुभव होती है तथा सामान्य कार्यों को करने में भी असमर्थता का अनुभव होने लगता है. परंतु सामान्यतः दमा में रोगी को साँस लेने में अवरोध महसूस होता है. इस रोग के मुख्य लक्षण हैं की इसमें बार-बार श्वास की क्रिया में दिक्कत उत्पन्न होती है. सीने व अन्य श्वसन तंत्र के अंगों में अचानक जकड़न व संकुलन उत्पन्न हो जाता है. श्वसन तंत्र में यह प्रतिक्रिया प्रायः किसी आलर्जन अथवा ट्रिग्गर (trigger) के कारण होती है.
श्वास की नलिकायों के संकुचन से साँस में घरघराहट होती है. सीने में जकड़न एवं खाँसी का होना दमा के लक्षण हैं.
दमा से बचाव के उपाय (Various Types of Asthma and Preventive Measures in Hindi According To Ayurveda)
दमा से निवरत्ति हेतु रोगी की संरचना के अनुसार उपचार एवं बचाव के उपाय किए जाते हैं.
ड्राइ हीट अस्थमा (dry-heat) अस्थमा: जलीय पदार्थों का सेवन अधिक करें एवं नाक, हाथ, पैर, पीठ को हवा से बचाना चाहिए और ठंडे प्रदेश में इन्हें ढक कर रखना चाहिए. सरसों या तिल के तेल से शरीर पर मालिश करें और गर्म तासीर का स्निघ्द भोजन करना हितकर है. ठंडे और बासी भोजन का सेवन बिल्कुल न करें.
इन्फेक्षन-टाइप (infection-type) अस्थमा: इस प्रकार के रोगियों को सब्जी और फल का सेवन अधिक करना चाहिए एवं रात्रि 10 बजे के बाद कुछ ना खावें. इस रोग में हल्दी का अधिक सेवन करना चाहिए. Echinacea की चाय बनाकर लें. प्राणायाम और योग का अभ्यास करना भी इन रोगियों में श्रेयस्कर है क्योंकि प्रायः इनमें यह रोग मानसिक तनाव और क्रोध के कारण होता है.
कनजेस्टिव टाइप अस्थमा (Congestive type): इस स्तिथि में रोगी को दूध और इससे बने पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए. भोजन में तीक्ष्ण, कसैले और मसालेदार पदार्थों का सेवन करना हितकर है. इससे जमी हुई श्लेष्मा के संचार में सहायता मिलती है.
जीवनचर्या (Beneficial Diet and Lifestyle In Asthma in Hindi)
गहरी श्वास का अभ्यास करने से भी यह समस्या बहुत हद तक नियंत्रण में आ जाती है. जब गहरी श्वास का प्रयोग रीढ़ की हड्डी सीधी रख कर किया जाए तो इससे चमत्कारिक लाभ प्राप्त होते हैं. श्वास भरते समय इस बात का ध्यान रखें की पहले छाती फूलती है, उसके पश्चात पेट फूलता है तथा शरीर के सभी अंगों में इसी प्रकार फुलावट को महसूस करें. इस प्रयोग से श्वास में दीर्घता आती है और शवसन तंत्र मजबूत हो जाता है. इसका प्रयोग 15 मिनिट रोज़ करें तथा यथाशक्ति इसे बढ़ाते जाएँ.
जिन व्यक्तियों को श्वास लेने में दिक्कत हो उन्हें भोजन में काली मिर्च, हल्दी, अदरक जैसे औषधीय मसालों (ayurvedic spices) का इस्तेमाल अधिक करना चाहिए.
अलर्जिक अस्थमा में शरीर की आलरजेन्स (allergens) के प्रति प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है जिसमे धूल , मिट्टी, ड्रग्स, प्रदूषण इन सबका असर पड़ता है.
अलर्जिक अस्थमा सक्रिय करने वाले अन्य कारण : डर, घबराहट, चिंता, तनाव, संसाधित खाद्य (processed foods), अधिक नमक-युक्त पदार्थ, आनुवांशिक कारण (hereditary factors).
दमा रोग के उपचार के लिए कुछ सरल घरेलू उपाय (Ayurveda Home Remedies For Asthma In Hindi)
- मेथी, अदरक और शहद युक्त औषधि: 2 चम्मच मेथी दाना, 1 लीटर पानी में मिलाएँ और आधे घंटे तक इसे उबाल कर छान लें. 2 चम्मच अदरक का पेस्ट बनाएँ और उसे उसका रस पूरी तरह से निचोड़ लें.
इस रस को उबले हुए पानी में मिलाएँ. इसमें एक चम्मच शहद मिलाएँ. इसे अच्छी तरह घोल लें और रोज़ इसका 1 गिलास सेवन करें.
- शहद से भरा हुआ कटोरा नाक के नीचे रख श्वास लेने में सहायता मिलती है.
- 2 चम्मच बेर का पाउडर लें और इसमें शहद मिला लें. इस मिक्स्चर को रोज़ प्रातः काल उठकर लें.