लंबे समय से चले आ रहे बुखार या ज्यादा श्रम करने के बाद शरीर एकदम सुस्त सा महसूस करता है। शरीर में कमजोरी आने से इसका सीधा असर हमारी कार्यक्षमता पर पड़ता है। शहरी जीवन भागदौड़ भरा होता है जबकि वनांचलों में आदिवासियों की जीवनचर्या बेहत नियमित होती है साथ ही इनके भोजन और जीवनशैली में वनस्पतियों का बेजा इस्तेमाल होता है और शायद यही वजह है जिससे वनवासियों की औसत आयु आम शहरी लोगों से ज्यादा होती है। लगातार कंप्यूटर पर बैठे रहना, खानपान के समय में अनियमितता और तनाव भरा जीवन मानसिक और शारीरिक तौर से थका देता है। इस सप्ताह आपको कुछ ऐसे नुस्खे बताने जा रहा हूं जिनका इस्तेमाल कर आप भी शरीर की थकान और तनाव
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लंबे समय से चले आ रहे बुखार या ज्यादा श्रम करने के बाद शरीर एकदम सुस्त सा महसूस करता है। शरीर में कमजोरी आने से इसका सीधा असर हमारी कार्यक्षमता पर पड़ता है। शहरी जीवन भागदौड़ भरा होता है जबकि वनांचलों में आदिवासियों की जीवनचर्या बेहत नियमित होती है साथ ही इनके भोजन और जीवनशैली में वनस्पतियों का बेजा इस्तेमाल होता है और शायद यही वजह है जिससे वनवासियों की औसत आयु आम शहरी लोगों से ज्यादा होती है। लगातार कंप्यूटर पर बैठे रहना, खानपान के समय में अनियमितता और तनाव भरा जीवन मानसिक और शारीरिक तौर से थका देता है। इस सप्ताह आपको कुछ ऐसे नुस्खे बताने जा रहा हूं जिनका इस्तेमाल कर आप भी शरीर की थकान और तनाव को दूर तो कर ही सकते हैं साथ ही नियमित जीवनशैली अपनाकर स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस कर सकते हैं। पातालकोट (म.प्र.) जैसे दूरगामी आदिवासी अंचलों में प्रो-बायोटिक आहार “पेजा” दैनिक आहार के रूप में सदियों से अपनाया जाता रहा है और इसका भरपूर सेवन भी किया जाता है। पेजा एक ऐसा व्यंजन है जो चावल, छाछ, बारली (जौ), नींबू और कुटकी को मिलाकर बनाया जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार इस आहार को कमजोरी, थकान और बुखार आने पर अक्सर रोगियों को देते हैं। पके हुए चावल, जौ और कुटकी को एक मिट्टी के बर्तन में डाल दिया जाता है और इसमें छाछ मिला दी जाती है जिससे कि यह पेस्ट की तरह गाढ़ा बन जाए। इस पूरे मिश्रण पर स्वादानुसार नींबू का रस और नमक मिलाकर अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है। दो दिनों के बाद इसे फेंटकर एक खास व्यंजन यानि पेजा तैयार हो जाता है। भोजन के वक्त एक कटोरी पेजा का सेवन जरूरी माना जाता है और ये बेहद स्वादिष्ट भी होता है। पीपल पीपल के पेड़ से निकलने वाली गोंद को शारीरिक ऊर्जा के लिए उत्तम माना जाता है। मिश्री या शक्कर के साथ पीपल की करीब एक ग्राम गोंद मात्रा लेने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और यह थकान मिटाने के लिए एक कारगर नुस्खा माना जाता है। प्रतिदिन इसका सेवन करते रहने से बुजुर्गों की सेहत भी बनी रहती है लटजीरा लटजीरा के संपूर्ण पौधे के रस (4 मिली प्रतिदिन) का सेवन तनाव, थकान और चिड़चिड़ापन दूर करता है। शरीर में अक्सर होने वाली थकान, ज्यादा पसीना आना और कमजोरी दूर करने के लिए आदिवासी टमाटर के साथ फराशबीन को उबालकर सूप तैयार करते हैं और दिन में दो बार चार दिनों तक देते हैं, माना जाता है कि यह सूप शक्तिवर्धक होता है।
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को दूर तो कर ही सकते हैं साथ ही नियमित जीवनशैली अपनाकर स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस कर सकते हैं। पातालकोट (म.प्र.) जैसे दूरगामी आदिवासी अंचलों में प्रो-बायोटिक आहार “पेजा” दैनिक आहार के रूप में सदियों से अपनाया जाता रहा है और इसका भरपूर सेवन भी किया जाता है। पेजा एक ऐसा व्यंजन है जो चावल, छाछ, बारली (जौ), नींबू और कुटकी को मिलाकर बनाया जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार इस आहार को कमजोरी, थकान और बुखार आने पर अक्सर रोगियों को देते हैं। पके हुए चावल, जौ और कुटकी को एक मिट्टी के बर्तन में डाल दिया जाता है और इसमें छाछ मिला दी जाती है जिससे कि यह पेस्ट की तरह गाढ़ा बन जाए। इस पूरे मिश्रण पर स्वादानुसार नींबू
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का रस और नमक मिलाकर अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है। दो दिनों के बाद इसे फेंटकर एक खास व्यंजन यानि पेजा तैयार हो जाता है। भोजन के वक्त एक कटोरी पेजा का सेवन जरूरी माना जाता है और ये बेहद स्वादिष्ट भी होता है। पीपल पीपल के पेड़ से निकलने वाली गोंद को शारीरिक ऊर्जा के लिए उत्तम माना जाता है। मिश्री या शक्कर के साथ पीपल की करीब एक ग्राम गोंद मात्रा लेने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और यह थकान मिटाने के लिए एक कारगर नुस्खा माना जाता है। प्रतिदिन इसका सेवन करते रहने से बुजुर्गों की सेहत भी बनी रहती है लटजीरा लटजीरा के संपूर्ण पौधे के रस (4 मिली प्रतिदिन) का सेवन तनाव, थकान और चिड़चिड़ापन दूर करता है। शरीर में अक्सर होने वाली थकान, ज्यादा पसीना आना और कमजोरी दूर करने के लिए आदिवासी टमाटर के साथ फराशबीन को उबालकर सूप तैयार करते
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हैं और दिन में दो बार चार दिनों तक देते हैं, माना जाता है कि यह सूप शक्तिवर्धक होता है। कद्दू के बीज ग्रामीण इलाकों में जी मचलना, थकान होना या चिंतित और तनावग्रस्त व्यक्ति को कद्दू के बीजों को शक्कर के साथ मिलाकर खिलाया जाता है। कद्दू के करीब 5 ग्राम बीज और इतनी ही मात्रा में मिश्री या शक्कर की फांकी मारी जाए तो बेहद फायदा होता है। ये मानसिक तनाव भी दूर करते हैं। आलू बुखारे के सेवन से शरीर से टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते हैं, कब्जियत दूर होती है और पेट की बेहतर सफाई होती है। इन फलों में पाए जाने वाले
फ़ाइबर्स और एंटी ऑक्सिडेंट्स की वजह से पाचन क्रिया ठीक तरह से होती है और शरीर की कोशिकाओं में मेटाबोलिज्म की क्रिया सुचारू क्रम में होती है। इन फलों में सिट्रिक एसिड पाया जाता है जो कि थकान दूर करने में सहायक होता है और इसके सेवन से लीवर यानि यकृत तथा आंतो की क्रियाविधियां सुचारू रहती हैं अत: आलू-बुखारा खाने से शरीर में जमा अतिरिक्त वसा या ज्यादा वजन कम करने में मदद होती है और व्यक्ति शारीरिक तौर पर बेहद स्वस्थ महसूस करता है। दूब घास आदिवासियों के अनुसार दूब घास/ दूर्वा का प्रतिदिन सेवन शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है और शरीर को थकान महसूस नहीं होती है। करीब 10 ग्राम ताजी दूर्वा को एकत्र कर साफ धो लिया जाए और इसे एक गिलास पानी के साथ मिलाकर ग्राईंड कर लिया जाए और पी लिया जाए, यह शरीर में ताजगी का संचार लाने में मददगार होती है। वैसे आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी दूबघास एक शक्तिवर्द्धक औषधि है क्योंकि इसमें ग्लाइकोसाइड, अल्केलाइड, विटामिन ए तथा विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। तुलसी पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार तुलसी को थकान मिटाने वाली एक औषधि मानते है, इनके अनुसार अत्यधिक थकान होने पर तुलसी के पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।