गठिया(Gout) यूरिक एसिड बढ़ने के कारण होने वाली ऐसी बीमारी है जो एक प्रकार के अर्थराइटिस होने का कारण होता है, इसे गाउटी अर्थराइटिस भी कहा जाता है। गठिया में यूरिक एसिड के क्रिस्ट्ल्स जोड़ो में जमा हो जाते है, यह समस्या तब होती है जब शरीर में सामान्य से अधिक यूरिक एसिड बनाने लगता है। गठिया की शुरुआत सबसे पहले पैर से होती है, आमतौर पर ये पैर के अंगूठे के जोड़ों (Metatarsal–phalangeal joint) से शुरु होता है और इसमें बहुत दर्द होता है तब इसे पोडेग्रा भी कहते है। कुछ समय के बाद यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स शरीर के दूसरे जोड़ो तक भी फैल जाते है और यह दर्द बढ़ता हुआ कोहनी, घुटने, हाथों की अंगुलियों के जोड़ों और टिशु तक पहुँच जाता है।

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आयुर्वेद में  गठिया  को वातरक्त कहा गया है। अत: यह वात और रक्त के दूषित होने से संबंधित रोग है। अनुचित आहार-विहार के सेवन से रक्त दूषित होकर वात के सामान्य मार्ग के लिए शरीर में बाधा उत्पन्न करता है तथा फिर वायु और रक्त दूषित होकर सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित होकर विभिन्न लक्षणों जैसे पीड़ा, जलन, लालिमा आदि लक्षण महसूस होने लगते हैं। गठिया कम उम्र के लोगों में सामान्यतः नहीं पाया जाता है। यह अधिकतर 30 से 50 वर्ष की उम्र में अपना असर दिखाता है। इसमें भी खासतौर पर यह 40 वर्ष के बाद होता है तथा महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा होता है।

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अक्सर जोड़ों के दर्द और गठिया को एक ही रोग मान लिया जाता है, लेकिन सच तो यह होता है कि दोनों में अंतर हैं। जोड़ो में दर्द होना सामान्य Arthritis कहलाता है, यह जोड़ो में होने वाली एक सूजनकारी बीमारी है जिसमें जोड़ों में अत्यधिक दर्द एवं जोड़ों को घुमाने, मोड़ने और कोई भी गतिविधि करने में परेशानी होती है। जबकि गठिया सामान्य जोड़ों के दर्द से अलग एक स्वतंत्र रोग होता है जिसे गाउट कहा जाता है। गठिया में मुख्य रूप से शरीर की छोटी संधियाँ प्रभावित होती है और उसकी शुरूआत पैर के अंगूठे में दर्द और सूजन के साथ होती है। सामान्य जोड़ो के दर्द में बुखार होना आवश्यक नहीं है परंतु गठिया (Gout) रोग की शुरूआत में दर्द और सूजन के साथ बुखार भी होता है।

अर्थराइटिस होने के पीछे जीवनशैली और आहार की बहुत बड़ी भूमिका होती है। गठिया का मुख्य कारण अनुचित आहार होता है। जैसे अधिक मात्रा में मांस, मछली, अत्यधिक मसालेदार भोजन शराब और फ्रूक्टोज युक्त पेय पदार्थों का सेवन। इसके अलावा हमारे शरीर में आई चयापचय (Metabolism) में खराबी के कारण और मोटापा के कारण भी अर्थराइटिस होता है।

कई बार अन्य रोगों की वजह से भी अर्थराइटिस होता है जैसे-

-गुर्दे से संबंधित बीमारी

-मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome)

-पॉलिसिथेमिया (Polycythemia)

-मूत्रवर्धक दवाइयों के सेवन से जैसे-हाइड्रोक्लोरथियाडाइड(Hydrochlorthiadide) के सेवन से भी अर्थराइटिस रोग हो सकता है।

यह रोग रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाने के कारण होता है। यूरिक एसिड की बढ़ी हुई मात्रा क्रिस्टल के रूप में जोड़ों, कंडरा (Tendons) तथा आस-पास के ऊतकों (टिशु) में जमा हो जाता है। यह रोग पाचन क्रिया से संबंधित होता है। इसका संबंध खून में यूरिक एसिड का अत्यधिक उच्च मात्रा में पाए जाने से होता है। इसके कारण जोड़ों (मुख्यत पैर का अंगूठा) में तथा कभी गुर्दे में भी भारी मात्रा में क्रिस्टल्स जमा हो जाते हैं।

यूरिक एसिड मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है और यह प्राय: गुर्दे या किडनी से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आना अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है तो यूरिक एसिड के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों की जगह पर जमा हो जाते हैं। हमारी रक्षात्मक कोशिकाएँ इन क्रिस्टल को ग्रहण कर लेती है जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निकलने लगते हैं।

प्यूरिन के चयापचय या मेटाबॉलिज्म में आई खराबी गठिया का मूल कारण होता है। यूरिक एसिड, प्यूरिन के चयापचय का उत्पाद के रूप में गठिया रोग का होना होता है। 90 प्रतिशत रोगियों में गुर्दे यूरिक एसिड का पर्याप्त उत्सर्जन नहीं कर पाते हैं। 10 प्रतिशत से कम रोगियों में ज्यादा यूरिक एसिड बनता है। यदि यूरिक एसिड 7,8 या 9 mg/dl हो तो गाउट होने का खतरा 0.5 प्रतिशत और 9 mg/dl से अधिक हो तो जोखिम 4.5 प्रतिशत रहता है। यूरिक एसिड का सामान्य स्तर पुरुष में 7 और स्त्री में 6 mg/dl होता है।

 

अर्थराइटिस होने पर दर्द होने के अलावा और क्या-क्या लक्षण होते हैं यह जानना भी ज़रूरी होता है ताकि रोग की सही समय पर और सही पहचान हो सके।

-पैर के अंगूठे में लालिमा लिए हुए सूजन एवं दर्द होना।

-शरीर के अन्य जोड़ों में तेज दर्द होता है।

-रोगी को दर्द के साथ बुखार भी रहता है।

-जोड़ो में दर्द, जकड़न और सूजन के साथ रोगी को चलने-फिरने और हिलने डुलने में भी तकलीफ होने लगती है।

अर्थराइटिस से बचने के लिए सबसे पहले जीवनशैली और आहार में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है।

आहार-

-यूरिक एसिड बढ़ने पर रोगी को उचित मात्रा में पानी पीना चाहिए। पानी यूरिक ऐसिड को पतला कर किडनी को उत्तेजित करता है जिससे शरीर से यूरिक ऐसिड मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है।

-भोजन बनाने के लिए जैतून के तेल का इस्तेमाल करें। यह शरीर के लिए लाभदायक होता है तथा इसमें विटामिन-ई की भरपूर मात्रा होती है जो यूरिक एसिड के स्तर को कम करता है

-ब्लैक बेरी और चेरी का जूस यूरिक एसिड के स्तर को कम कर जोड़ो और किडनी से क्रिस्टल को दूर करने में मदद करता है। इसमें एंटी ऑक्सिडेंट और एंटी इंफ्लैमटोरी गुण होते हैं जो गठिया रोग में लाभदायक होता है।

-पपीते के फल का सेवन करे इसमें मौजूद पैपीन एंजाइम जोड़ों मे आई सूजन को दूर करता है तथा यूरिक एसिड को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है।

-अनानास खाएं, इसमें मौजूद एंजाइम ब्रोमीलेन में सूजनरोधी गुण होते हैं साथ ही यह यूरिक एसिड के क्रिस्टल्स  को तोड़ने में मदद करता है।

-फाइबर युक्त पदार्थों का सेवन करें जैसे; ब्रोक्ली, मक्का आदि।

-सुबह नाश्ते में लौकी के जूस का सेवन करें।

–गाजर और चुकंदर का जूस पिएँ, यह यूरिक एसिड को कम करता है।

-ताजे फलों एवं सब्जियों का सेवन करें।

-सुपाच्य एवं हल्का आहार ग्रहण करें।

-मांसाहार भोजन एवं अण्डा आदि बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।

-शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।

-दूध एवं दाल का सेवन न करें, यदि दाल का सेवन करना हो तो छिलके वाली दाल का सेवन करें।

–दही, चावल, अचार, सूखे मेवे, दाल, पालक, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक। इन सब का सेवन न करें। ये सब चीजें यूरिक एसिड की समस्या को बढ़ाती हैं।

-बेकरी प्रोडक्ट्स का सेवन न करें क्योंकि इनमें ट्रांस फैट होता है और ट्रांस फैट से भरपूर खाना यूरिक एसिड बढ़ाने में जिम्मेदार होता है, इसलिए बेकरी के उत्पाद जैसे; पेस्ट्री, कूकिज़ बिल्कुल न खाएँ।

जीवनशैली

-रोज सुबह प्राणायाम करने से लाभ मिलता है।

 

गठिया के उपचार हेतु एलोपैथ में जिन दवाइयों का प्रयोग किया है वह एक समय के बाद शरीर पर विपरीत प्रभाव डालती है तथा वह साइड इफेक्ट्स से युक्त होती है। इनके सेवन के बाद भी फिर से गठिया होने की संभावना बनी रहती है। वहीं आयुर्वेदिक उपचार की प्रक्रिया में दोषों को संतुलित किया जाता है, जिसमें बढ़े हुए दोषों को घटाकर और हीन दोषों को बढ़ा कर रोग को मूल से समाप्त किया जाता है तथा प्राकृतिक चिकित्सा होने से इसके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते हैं।

वैसे तो अर्थराइटिस से निजात पाने के लिए सबसे पहले घरेलू नुस्ख़ों को ही अपनाया जाता है। यहां हम पतंजली के विशेषज्ञों द्वारा पारित कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बात करेंगे जिनके सेवन से अर्थराइटिस के दर्द से राहत पाया जा सकता है-

लहसुन की दो से तीन कलियों को नियमित रूप से गर्म पानी के साथ सेवन करें। यह गठिया रोग को जड़ से खत्म करने में मदद करता है।

-एक चम्मच मेथी के बीज लेकर रात में लगभग आधे गिलास पानी में भिगा कर रख दें। सुबह उठकर इस पानी को पिएँ और बीजों को चबाकर खा लें। यह जोड़ों में आई सूजन को कम करती है।

-मेथी, हल्दी तथा सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर उसका पाउड़र बना लें सुबह-शाम 1-1 चम्मच पाउड़र को गुनगुने पानी या दूध के साथ सेवन करें। इसका प्रयोग करने से ज़ोड़ों के दर्द एवं सूजन में लाभ मिलता है।

-मेथी को अंकुरित करके प्रतिदिन सेवन करने से ज़ोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।

एक गिलास पानी में आधा चम्मच अजवायन और एक टुकड़ा अदरक डालकर उबालें। अब इसे आधे गिलास की मात्रा में सुबह-शाम दिन में दो बार पिएँ। इस योग के सेवन से पसीना आता है जो शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालने में मदद मिलती है।

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