5-7 दिन तक एंटीबायोटिक दवा का कोर्स चलता है एक्यूट ब्रॉन्काइटिस के रोगी का। ऐसे में कुछ परहेज करना जरूरी है। क्रॉनिक स्थिति में दवाओं का कोर्स 10-21 दिन तक चलता है। 02 हफ्ते से ज्यादा लगातार यदि खांसी की समस्या है और इलाज लेने में लापरवाही बरती जाए तो ब्रॉन्काइटिस, सीओपीडी के अलावा फेफड़े का कैंसर और टीबी की स्थिति बन सकती है व जान का जोखिम भी बढ़ जाता है।
ब्रॉन्काइटिस बच्चों या बड़े किसी को भी हो सकता है। खासतौर पर प्रेग्नेंसी के दौरान जो महिलाएं धूम्रपान करती हैं उनके होने वाले शिशु के शरीर में कुछ खास एंजाइम्स की मात्रा बढ़ने से फेफड़े अविकसित रह सकते हैं। ब्रॉन्काइटिस सांस की नली में सूजन की समस्या है। इसमें लगातार खांसी आने के साथ फेफड़ों में संक्रमण तेजी से बढ़ता है और शरीर में कई बदलाव दिखते हैं जिन्हें समय रहते दवाओं और परहेज से रोक सकते हैं। यह रोग दो तरह का है- एक्यूट व क्रॉनिक। एक साल में तीन बार से ज्यादा खांसी की शिकायत लगातार दो साल तक बनी रहे तो ये क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस की श्रेणी में आता है। प्रमुख कारण धूम्रपान करना या वातावरण में मौजूद अधिक प्रदूषण का होना है। सिगरेट पीने वाले 22 फीसदी लोगों को रोग का खतरा अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हे पर काम करने वाली महिलाओं में इसके धुएं से फेफड़ों को नुकसान होता है।
रोग के लक्षण –
श्वास नली में सूजन होने पर तेज खांसी, सूखी खांसी, बलगम आना, गंभीर परिस्थिति में गाढ़ा पीला व हरे रंग का बलगम आता है। सीने में दर्द के साथ सीने से सीटी जैसी आवाज आने की शिकायत। इन लक्षणों के दिखते ही चेस्ट फिजिशियन को दिखाएं वर्ना लापरवाही से संक्रमण अन्य अंगों में फैल सकता है।
ऐसे होती दिक्कत –
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सांसनली में सूजन के बाद फेफड़े की म्यूकोसा जिसे श्वांस नली की झिल्ली कहते हैं, में सूजन आ जाती है व ग्रंथि बढ़ जाती है। इससे भीतर ही भीतर म्यूकस नाम का पदार्थ निकलता है जिससे खास तत्त्वों की मात्रा बढ़ने से संक्रमण फैलता है व सांस लेने में दिक्कत होती है।
इन्हें बीमारी का अधिक खतरा-
रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो या जिन्हें टीबी, एचआईवी और किडनी संबंधी रोग हैं उन्हें इसका खतरा अधिक रहता है। इसके अलावा कैंसर के रोगी जिनकी कीमोथैरेपी या रेडियोथैरेपी चल रही है उन्हें भी इसकी आशंका रहती है। ऐसे में मरीज को सिगरेट पीने की लत से तौबा करने और प्रदूषण से बचाव के लिए मुंह पर मास्क लगाने के लिए कहते हैं।
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ऐसे करें बचाव -जिन्हें कभी ब्रॉन्काइटिस हुआ है, वे बचाव के लिए इंफ्लूएंजा वैक्सीन साल में एक बार लगवाएं। वहीं ब्रॉन्काइटिस के गंभीर रोगियों को साल में दो बार निमोकोकल वैक्सीन लगवानी चाहिए। वैक्सीनेशन के बाद रोग की आशंका घट जाती है। विशेषज्ञ इसके लिए ली जाने वाली दवा तीन हफ्ते तक रोजाना लेने की सलाह देते हैं।
ऐसे होती दिक्कत –
सांसनली में सूजन के बाद फेफड़े की म्यूकोसा जिसे श्वांस नली की झिल्ली कहते हैं, में सूजन आ जाती है व ग्रंथि बढ़ जाती है। इससे भीतर ही भीतर म्यूकस नाम का पदार्थ निकलता है जिससे खास तत्त्वों की मात्रा बढ़ने से संक्रमण फैलता है व सांस लेने में दिक्कत होती है।
रोग की जांच –
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चेस्ट एक्स-रे कर रिपोर्ट में सीने व उसके आसपास कफ या संक्रमण होने पर बलगम की जांच की जाती है। इससे संक्रमण का स्तर व बैक्टीरिया का ग्रेड पता चलता है जिसके आधार पर दवा देते हैं। रोगी को छह मिनट तक पैदल चलने के लिए कहते हैं जिसे मेडिकली सिक्स मिनट वॉक कहते हैं। इससे सांस लेने की गति मापते हैं। फिर स्पाइरोमेट्री से फेफड़ों की क्षमता जांचते हैं।
आयुर्वेदिक इलाज –
दूध में शक्कर की बजाय 1-2 चम्मच शहद मिलाकर पीएं। सौंठ व हरड़ का चूरा बनाकर आधी चम्मच, दो चम्मच शहद में मिलाकर पीएं। खानपान में पौष्टिक आहार के साथ मौसमी फल व हरी सब्जियां खाएं। गुनगुना दूध पीना लाभकारी है। यदि खांसी की समस्या लंबे समय से है तो आयुर्वेद विशेषज्ञ से मिलें। वे नैचुरोपैथी से जुड़े तरीकों से बलगम बाहर निकालते हैं।