अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान राम और माता सीता के विवाह उत्सव के रूप में माना जाता है। इस वर्ष विवाह पंचमी (राम सीता विवाह उत्सव) 19 दिसंबर को है। भगवान राम और माता सीता का वैवाहिक जीवन आज भी एक आदर्श वैवाहिक जीवन माना जाता है, इसलिए अक्सर जब लोग किसी का रिश्ता देखने जाते तो कहते हैं कि जोड़ी हो तो राम-सीता की तरह। भगवान राम और माता सीता के वैवाहिक जीवन से सीख हर दंपति को सीख लेनी चाहिए। श्री राम और सीता जी के वैवाहिक जीवन से सीख लेकर आप भी अपने दांपत्य जीवन को मजबूत बना सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि राम-सीता के वैवाहिक जीवन से क्या सीख मिलती है।
जब भगवान राम को वनवास सुनाया गया तो माता सीता भी उनके साथ वन को गई। भगवान राम ने माता सीता से महल में ही रहने का आग्रह किया लेकिन माता सीता ने राम जी के वनवास पर जाने का निर्णय किया और उनके साथ वनवास लिया। इस तरह से भगवान राम और माता के वैवाहिक जीवन में हमें सीख लेनी चाहिए कि परिस्थिति चाहें जो भी हो पति-पत्नी को हमेशा हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ निभाना चाहिए।
त्याग की भावना
माता सीता राजा जनक की पुत्री थी। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपना जीवन महल में बिताया था। विवाह के पश्चात भी वे जनकपुरी से अयोध्या आई, परंतु उन्होंने अपने स्वामी (भगवान राम) के लिए सभी सुखों का त्याग कर दिया और उनके साथ वन में जाने का निर्णय लिया। इससे सीख प्राप्त होती है कि किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए आवश्यकता पड़ने पर पति-पत्नी को कुछ चीजों का त्याग करने की भावना होना आवश्यक होता है।
रिश्ते में विश्वास
जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया तो भी उन्होंने भगवान राम से अपना विश्वास कमजोर नहीं होने दिया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि राम जी उन्हें यहां से अवश्य ले जाएंगे। राम जी ने भी सीता जी की खोज में अपनी पूरी शक्ति लगा दी और रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्ति के बाद माता सीता को वापस लाए।
निःस्वार्थ भाव से प्रेम
भगवान राम और माता सीता ने हमेशा एक दूसरे से निस्वार्थ भाव से प्रेम किया, इसलिए हर परिस्थिति में एक दूसरे के साथ रहे और उनका रिश्ता मजबूत बना रहा। इस तरह से राम जी और सीता जी के वैवाहिक से हमें सीख मिलती है कि हमेशा निस्वार्थ भाव से प्रेम करना चाहिए। निस्वार्थ भाव से किया गया प्रेम ही सच्चा प्रेम होता है।
रिश्ते में ईमानदारी होना है जरूरी
रावण की बहन शूर्पनखा सर्वप्रथम भगवान राम के समक्ष विवाह का प्रस्ताव लेकर गई थी, परंतु उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि इस जीवन में उन्होंने केवल सीता को ही अपनी पत्नी बनने का वचन दिया है। उसके बाद शूर्पनखा लक्ष्मण के पास गई। इससे हमें सीख मिलती है कि हमेशा एक दूसरे के प्रति ईमादार रहना चाहिए। रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए ईमानदार होना बहुत आवश्यक होता है।
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