लत किसी भी चीज की हो, बुरी है। खासकर नशे की लत की बात की जाए तो यह घर-बार से नाता तोड़कर सिर्फ बीयर-बार से जोड़ देता है। हकीकत यह है कि इस लत से आजाद होना मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
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केस 1- राकेश को हुआ फायदा
पारिवारिक समस्या और उससे पैदा हुए तनाव की वजह से राकेश (बदला हुआ नाम) को शराब की लत लग गई। शराब की वजह से उनकी जॉब छूट गई। धीरे-धीरे 5 साल बीत गए। परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। बाद में उन्हें समझ में आया कि यह सिर्फ अडिक्शन नहीं, एक बीमारी है। इसके बाद राकेश के परिवार वाले राकेश को लेकर एम्स के साइकायट्री विभाग में गए। डॉक्टरों ने परिवार वालों से राकेश के बारे में हर तरह की जानकारी ली। पूरी केस हिस्ट्री देखने के बाद उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन किया, जिससे पता चला कि शराब के कारण शरीर पर बहुत बुरा असर हुआ है। इसके अलावा डॉक्टरों ने पता लगाया कि इस वक्त वह नशा छोड़ने के लिए तैयार हैं या नहीं और यह भी कि उनका निश्चय कितना मजबूत है। शराब की वजह से डिप्रेशन या अन्य तरह की समस्या तो नहीं है। इसके बाद राकेश को बताया गया कि उनका जबर्दस्ती इलाज नहीं किया जाएगा। डॉक्टरों के इस कदम के बाद वह डॉक्टरों पर यकीन करने लगे। फिर उनका इलाज शुरू हुआ। पहले उनकी काउंसलिंग शुरू की गई और फिर अडिक्शन कंट्रोल करने की तकनीक सिखाई गई। फैमिली की भी काउंसलिंग हुई। डेढ़-दो साल के इलाज के बाद वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।
केस 2- हर्षिता की परेशानी दूर
हर्षिता (बदला हुआ नाम) को स्मैक का अडिक्शन था। ऐसे में डॉक्टरों ने उनके लिए भी कमोबेश वही तरीका अपनाया जो राकेश के लिए अपनाया था। दरअसल, हर्षिता को अनजाने में ही स्मैक की लत लग गई थी। उन्हें इस खतरनाक अडिक्शन लगने से पहले माइग्रेन की समस्या थी और उससे निजात पाने के लिए एक झोलाछाप डॉक्टर के कहने पर उन्होंने पेनकिलर इंजेक्शन लेना शुरू कर दिया। यह स्मैक था। धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग गई। घर में वह खुद से या पति से यह इंजेक्शन लगवाने लगीं। हर्षिता जैसे ही उस इंजेक्शन को बंद करने की कोशिश करतीं, उन्हें कई तरह की परेशानियां होने लगतीं। जब वह डॉक्टरों के पास पहुंचीं तो उनका इलाज शुरू हुआ। हर्षिता की असल परेशानी को डॉक्टरों ने जल्दी समझ लिया। अडिक्शन को दूर करने के लिए फौरन ही इलाज शुरू कर दिया। चूंकि हर्षिता खुद ही नशा नहीं करना चाहती थीं, इसलिए डॉक्टरों को ज्यादा समस्या नहीं हुई और वह नशे की गिरफ्त से छूट गईं। आज हर्षिता इस परेशानी से पूरी तरह आजाद हो चुकी हैं और सामान्य जीवन जी रही हैं।
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अडिक्शन क्या है?
जब कोई शख्स नशे के सेवन को कंट्रोल नहीं कर पाता है तो नशीले पदार्थ का सेवन बीमारी का रूप धारण कर लेती है।
-अडिक्शन मानसिक बीमारी है।
-ज्यादा समय तक नशा करने पर दिमाग में बदलाव होने लगता है, जिसे बिना इलाज के ठीक करना मुमकिन नहीं है।
-इसमें लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ती है। इलाज के दौरान दवाई, काउंसलिंग और सामाजिक मेल-मिलाप जरूरी होता है।
-इलाज के बाद भी बहुत सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इसकी आशंका बनी रहती है कि अडिक्शन खत्म होने के बाद, यह फिर से शुरू हो जाए।
…तो समझो मामला गड़बड़ है
जब नशे की लत लग जाती है तो इससे दूर रहना बहुत मुश्किल हो जाता है। कोई नशे की लत का शिकार हो चुका है, इसके कुछ संकेत हैं:
-नशीली चीज का एक साल से ज्यादा समय से इस्तेमाल करना
-नशा बंद करने या सीमित इस्तेमाल के लिए की जाने वाली कोशिश का हमेशा नाकाम रहना या इच्छा का लगातार बने रहना
-नशे की वजह से ऑफिस, स्कूल या घर में जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहना
-रिश्तों में समस्या पैदा होना और लोग दूरी बनाने लगें
-खेल, टीवी यहां तक कि सिनेमा जैसे मनोरंजन के साधनों को छोड़ देना या बहुत कम कर देना
-नशे की वजह से शरीर में हो रही शारीरिक या मानसिक समस्या के बारे में जानकारी होने के बावजूद भी नशीली पदार्थों का बार-बार इस्तेमाल करना
-नशे का असर ज्यादा हो, इसके लिए लगातार इसकी मात्रा बढ़ाते जाना
कैसे करें इस्तेमाल :
- करी पत्ते को अच्छी तरह से धो लें।
- रोज सुबह खाली पेट आठ से दस पत्तियों का सेवन करें।
- समस्या के दिनों में यह प्रक्रिया रोजाना कर सकते हैं।
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परिवारवाले कर सकते हैं ऐसे मदद
मरीज को नशे की लत से बाहर लाने में परिवारअहम भूमिका निभा सकता है। इतना ही नहीं मरीज को पीड़ा, तनाव, शर्म और अपराधबोध से मुक्त कराने में मदद कर सकता है:
-फैमिली मेंबर्स, फ्रेंड्स, टीचर्स, हेल्थ सेंटर्स द्वारा, प्रेरणा देकर, बार-बार नशा करने से रोककर मदद कर सकते हैं।
-अडिक्शन की राह पर बढ़ रहे शख्स को नशे से बीमारी होने का कारण बताकर मदद कर सकते हैं।
-गलत धारणाओं को दूर करके मदद करें।
-मरीज को नशा छोड़ने और काउंसिलिंग और जरूरत पड़ने पर दवा लेने के लिए मोटिवेट करके भी हेल्प करें।
-नशे की तलब लगने वाली परस्थितियों के बारे में जागरुक करके उसकी मदद करें।
-किसी को मरीज के साथ बदसलूकी की इजाजत न दें।
-यदि आपके स्वयं के जीवन का कोई जरूरी पहलू खतरे में है तो काउंसलर की मदद लें।
-फैमिली को भी अडिक्शन संबंधित जानकारी होनी चाहिए। इससे उनका मरीज के प्रति गुस्सा कम होता है। इससे घर में इस मुद्दे पर बेवजह कलह भी कम होता है।
-पेशंट को समझना और दोष न देना सबसे ज्यादा जरूरी है।
-परिवार का तनावग्रस्त होना भी कॉमन है। इसके लिए उन्हें भी प्रफेशनल हेल्प की जरूरत होती है।