जालंधर, जेएनएन। पद्म पुराण, शिव पुराण और स्कंद पुराण में दैत्यराज जालंधर के जन्म के बारे में बहुत कुछ वर्णित है। शिव पुराण के श्री रुद्र संहिता पंचम खंड-चौहदवें अध्याय में वर्णित है कि जब देवराज इंद्र और बृहस्पति जी शिव से मिलने इंद्रपुरी से कैलाश आए तो वहां मनमाफिक सम्मान न मिलने पर इंद्र ने रुष्ट होकर भगवान शंकर का अपमान कर दिया। इससे क्रोधित भगवान शंकर तांडव की मुद्रा में आ गए। भयभीत इंद्र छिप गए और देवलोक में खलबली मच गई। भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से अग्नि प्रकट हुई। इसी कोपाग्नि से एक बालक ने जन्म लिया। उस समय सागर की लहरों में तूफान जैसी स्थिति थी। इन्ही लहरों पर उस बालक को आश्रय मिला। यही बालक बड़ा होकर क्रूर, दंभी और अथाहशक्ति के स्वामी दैत्यराज जालंधर के नाम से विख्यात हुआ। इसी के नाम से जालंधर को जाना जाता है।
जालंधर को अपना जातक पुत्र मान सागर यह धरती उसको भेंटकर यहां से हट गया। जालंधर का नामकरण ब्रह्मा जी ने किया था। उन्होंने ही जालंधर का राज्याभिषेक करवाया। जालंधर का अत्याचार बढ़ने लगा। देवताओं के अलावा उसने अपने गुरु शुक्राचार्य का भी निरादर कर दिया। महर्षि नारद ने भगवान शंकर को कहा कि इस अत्याचारी से धरती को मुक्ति दिलाएं। भगवान शंकर ने समझाना चाहा तो जालंधर ने उनका ही उपहास उड़ाया। इस पर भगवान शंकर ने श्री विष्णु को इसे दंड देने के लिए कहा।
भगवान विष्णु भगवान समझाने गए तो जालंधर ने युद्ध को ललकारा। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से यह वचन ले लिया था कि जालंधर की हत्या न करें। लक्ष्मी जी का जन्म भी अमृत मंथन के समय सागर से हुआ था। जालंधर भी सागर का जातक पुत्र था, इसलिए वह लक्ष्मी जी का भाई ही हुआ। भगवान विष्णु और जालंधर के लंबा युद्ध चला। वचन में बंधे होने से भगवान विष्णु युद्ध को निर्णय तक पहुंचाए बगैर वापस चले गए।
नारद के आग्रह पर भगवान शंकर ने जालंधर से किया युद्ध
पुराणों में वर्णित है कि महर्षि नारद के आग्रह पर भगवान शंकर ने जालंधर से युद्ध किया। युद्ध लंबे समय तक चला। भगवान शंकर जानते थे कि दैत्यराज जालंधर की पत्नी देवी वृंदा सत्य, त्याग और तपस्या की मूर्ति है। इसलिए जालंधर का वध करना कठिन है। कई महीनों तक चले युद्ध के बाद जालंधर भगवान शंकर के हाथों मारा गया। पुराणों के अनुसार जालंधर का सिर कटकर ज्वाला जी में गिरा। विशालकाय धड़ यहां गिरा। उसके शरीर पर जालंधर नगर का उदय हुआ। कमर के नीचे का भाग मुल्तान में जा गिरा था।
भगवान विष्णु वृंदा के पति की रक्षा नहीं कर सके। इस पर सती (वृंदा) ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह धरती पर शालिग्राम यानि शिला के रूप में रहें। इस पर देवी लक्ष्मी ने वृंदा से अपने पति भगवान विष्णु को इस श्राप से मुक्त करने की विनती की। तब देवी वृंदा ने सती होने से पूर्व भगवान विष्णु को अपने समीप रहने की शर्त पर अपने श्राप को संशोधित कर दिया। देवी वृंदा के सती होने के पश्चात उस राख से एक नन्हे पौधे ने जन्म लिया। ब्रह्मा जी ने इसे तुलसी नाम दिया। यही पौधा सती वृंदा का पूजनीय स्वरूप हो गया। भगवान विष्णु ने देवी तुलसी को भी वरदान दिया कि वह सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली माता कहलाएंगी और वर्ष में एक बार शालिग्राम और तुलसी का विवाह भी होगा।
सती का जहां वाम स्तन गिरा, वहां है श्री देवी तालाब मंदिर
श्रीमद् देवी भागवत पुराण के सातवें स्कंद में है कि सती जी ने पिता दक्ष प्रजापति की इच्छा के विपरीत तप कर भगवान शंकर से विवाह रचाया। महर्षि नारद की तरह दक्ष प्रजापति भी ब्रह्मा जी के पुत्र थे। दक्ष को एक भस्म-भभूत में रमे सर्प लपेटे व मृृगछाला धारण किए व नंदी पर सवारी करने वाला दूल्हा पसंद नहीं था। भगवान शंकर को अपमानित करने के लिए दक्ष प्रजापति ने यज्ञ करवाया, लेकिन उसमें उनको नहीं बुलाया। यह बात देवी सती को पीड़ादायक लगी।
भगवान शंकर के मना करने के बाद भी सती यह कहकर यज्ञ में चली गईं कि वह पिता के घर जा रही हैं। वहां सती ने हवन कुंड में आहुति दे दी। वह यज्ञस्थल हरिद्वार के समीप कनखल में आज भी विद्यमान है। इसकी जानकारी होने पर शंकर क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी जटा का एक बाल उखाड़कर धरती पर फेंका, जिससे वीर बलभद्र प्रकट हुए। बलभद्र ने यज्ञशाला को रक्तरंजित कर दक्ष प्रजापति का शीश काट दिया। भगवान शंकर ने देवी सती का अधजला शरीर अपने कंधे पर उठा लिया व तांडव करने लगे। प्रलय आ गई। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के अंग-प्रत्यंग छिन्न भिन्न करके गिराने आरंभ कर दिए। सती के अंग-प्रत्यंग 51 स्थानों पर गिरे। जहां-जहां ये अंग गिरे, वहीं जगदंबे मां प्रकट हो गईं।
जब भगवान शंकर शांत हो गए तब दक्ष प्रजापति की पत्नी ने महादेव से विनती की कि उनके सुहाग को जीवनदान दें। भगवान शंकर ने एक बकरे का शीश दक्षराज के शरीर पर लगा दिया, जिससे वह केवल बम-बम ही बोल पाते रहे। सती के अंग-प्रत्यंग वाले सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाने लगे। 51 शक्तिपीठों में एक जालंधर में भी है। जालंधर में जिस जगह सती का वाम स्तन गिरा, वहां एक सरोवर भी है। इसे श्री देवी तालाब कहा जाता है। इस शक्तिपीठ तीर्थ का नाम त्रिपुरमालिनी एवं विश्वमुखी है।
भगवान राम के पुत्र लव की राजधानी था जालंधर
उत्तर रामायण में वर्णित है कि भगवान वाल्मीकि के आश्रम में सीता को प्रभु राम ने जब वनवास दिया था, तब वह गर्भावस्था में थी। लक्ष्मण जी ने सीता को भगवान वाल्मीकि के आश्रम के समीप छोड़ दिया। भगवान वाल्मीकि आश्रम में ही सीता ने दो सुपुत्रों लव और कुश को जन्म दिया। बड़े होकर लव इस क्षेत्र के राज सिंहासन पर आसीन हुए जालंधर को उनकी पहली राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ।
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उसमें ऊपर से शहद इतना डालना है कि किशमिश अच्छी तरह से डूब जाए. अब इसे ढक्कन बंद करके 48 घंटे के लिए किसी अंधेरी कोठरी में रख दें. 48 घंटे बाद किशमिश के 4-6 दाने शहद के साथ निकाल लीजिए और सुबह खाली पेट सेवन करें. इसके पश्चात गाय का दूध एक ग्लास पिए. नियमित ऐसा करने से कुछ ही दिनों में आपकी मर्दाना शक्ति बढ़ जाएगी. ध्यान रहे इसे खाने से पहले और खाने 30 मिनट तक और खाने के 30 मिनट बाद तक किसी भी चीज का सेवन ना करें. साथ ही इसके सेवन काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें. धन्यवाद. काली किशमिश पाचन तंत्र के लिए भी बेहद लाभदायक है।
मोटापा – मोटापे की वजह से भी पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं। हालांकि, ये समस्या कम वजन वालों को भी होती है लेकिन मोटापा इसकी एक मुख्य वजह हो सकता है।
थायराइड – आजकल महिलाओं में थायराइड की समस्या बहुत आम हो गई है। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है। गर्दन में स्थित थायरॉयड ग्रंथि, मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करती है। यह शरीर के कई कार्यों में भी भूमिका निभाती है। अगर आपको थायराइड संबंधित कोई समस्या है तो इसका असर पीरियड्स पर भी पड़ता है।
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घर पर स्तन के आकार को स्वाभाविक रूप से बढ़ाने के तरीके- डाइट:
1. दूध – दूध, दुग्ध के उत्पाद, मक्खन इन सब के बारे में जान लीजिए की यह स्तन का आकार बढ़ाने में काफी सहायक होते हैं। दूध में अधिक मात्रा में वसा होती है जो स्तन के उतकों में वसा बनाने का काम करते हैं। साथ ही वसायुक्त आहार लेने से भी ब्रेस्ट का आकार बढ़ जाता है।
2.अश्वगंधा पाउडर – अश्वगंधा के इस्तेमाल से स्तनों के आकर में वृद्धि होती है|
3.ब्रैस्ट प्लस आयल – इस तेल में पड़ी जड़ी बूटियां स्तनों को सुडोल बनाने में मदद करती है|
4.नारी यौवन पाक – इसके नाम की तरह ही यह नारी के यौवन को आकर्षक आकर देने में मदद करता है यह अश्वगंधा के साथ ही किर्या करता है|
सेवन विधि :-दूध के साथ अश्वगंधा और नारी यौवन पाक का इस्तेमाल करने से अच्छा परिणाम मिलता है|
सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियां :
1- अश्वगंधा : आयुर्वेद के अनुसार अश्वगंधा एक रसायन औषधि है और यह पुरुषों के शरीर में सभी धातुओं की मात्रा बढ़ा देती है। इसके सेवन से खासतौर पर शुक्र धातु की मात्रा काफी बढ़ जाती है। इसके नियमित सेवन से शरीर की उर्जा बढ़ती है, वीर्य बढ़ता है और सेक्स के दौरान आप जल्दी थकते नहीं हैं।
खुराक : रोजाना एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण
सेवन का तरीका : आधा चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें और उसे शहद या दूध के साथ मिलाकर दिन में दो बार खाने के बाद इसका सेवन करें.
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कुछ दिन बाद मुझे ऑनलाइन एक शख्स मिला। इस शख्स की लंबी दाढ़ी थी और सिर पर लंबे बाल थे। ये शख्स उस फल को लाने के लिये हमेशा कोंगो के जंगलों में आता जाता रहता था। मैंने उससे बात की और कुछ कम पैसों में ही उसे मना लिया। कुछ दिन बाद उसने मेरे घर उस जादुई फल का थोड़ा सा मिश्रण भिजवा दिया। जब ये मिश्रण आया तो मैं काफी नर्वस था। मैं अंदर से डरा हुआ था, लेकिन मुझे ये भी पता था कि मेरे पास खोने के लिये कुछ नहीं है। फिर उस रात बड़ी हिम्मत करके मैंने इसे खाना शुरू कर दिया।
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शराब और धूम्रपान न करें: यदि आप स्वस्थ रहना चाहती हैं तो सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखने कि शराब और धूम्रपान करें। इस प्रकार के व्यसन अनेक बीमारियों और कैंसर, हृदय रोग जैसी जानलेवा बीमारियों को आकर्षित करते हैं। कोशिश करें इनका सेवन न करें।
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