भोजन के रूप में आप कब, कहां और क्या खाएं, इसके निर्धारण में आपकी आयु, दिन का समय और वर्ष का समय देखा-समझा जाना चाहिए। बालपन में कफ ऊर्जा की अधिकता रहती है। जल एवं पृथ्वी तत्वों की प्रधानता रहती है। बच्चों में कफ की विकृति से पित्त ऊर्जा दब जाता है, ठीक वैसे ही जैसे जल और मिट्टी से आग दब जाती है। अपने भोजन के माध्यम से कुछ अग्नि तत्व ग्रहण करके इस समस्या से उबर सकते हैं। इसके लिए, बच्चे की मां के भोजन में लहसुन, अदरक, काली मिर्च, मेथी और तुलसी होना चाहिए।
युवा अवस्था में पित्त ऊर्जा की प्रमुखता रहती है और अग्नि तत्व बढ़ा हुआ होता है। ऐसी अवस्था में अग्नि तत्व की प्रधानता वाली चीजें खाने से समस्या गंभीर बन जाती है। अतः ठंडी चीजों जैसे चावल, दूध, सौंफ और कटु रसवाली वस्तुएं पित्त विकृति का शमन करने में सहायक होती हैं।
वृद्धावस्था में व्यक्ति वात् प्रधान हो जाता है। यही कारण है कि बहुत से लोग पचास की उम्र पार करते-करते उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, बवासीर और गठिया आदि रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। यदि हम वात्-विकृति के प्रति सावधान रहें, तो इन रोगों से बच सकते हैं।
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