गौ संरक्षण के दावों के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाली संस्थाओं को उत्तरकाशी के 24 गांवों की करीब पांच हजार महिलाएं आईना दिखा रही हैं।
यह महिलाएं न केवल भारतीय संस्कृति का मूल आधार कहे जाने वाली गौ माता का संरक्षण कर रही हैं, बल्कि गोमूत्र बेचकर अपनी आजीविका भी चला रही हैं।
इसमें कई विधवा महिलाएं एवं गरीब युवतियां भी हैं, जो दो से तीन हजार रुपये प्रतिमाह कमा रही है।
त्तरकाशी जिले के सीमांत विकासखंड भटवाड़ी के मांडों, मुस्टिकसौड़, साडा, कंकराड़ी, तिलोथ, जसपुर, भैलूड़ा, बोंगा, कोटी, लदाड़ी, डांग, पोखरी, क्षेत्रपाल, ज्ञानसू, मातली, बडेथी सहित 24 गांवों की करीब 5 हजार महिलाएं गायों की असली संरक्षक बन गई है।
इन गांव में अधिकांश महिलाएं दो से तीन गाय पाल कर दूध के साथ ही गोमूत्र भी बेच रही हैं।
महिलाएं पिछले कुछ सालों से पांच रुपए लीटर के हिसाब से गोमूत्र बेचकर प्रति महिला प्रत्येक माह 500 से 2500 रुपए तक कमा रही है।
इसमें कई ऐसी विधवा एवं गरीब महिलाएं भी है, जो सिर्फ गो मूत्र से ही परिवार का पालन पोषण कर रही है।
वर्ष 2010 में पतंजली ग्रामोद्योग न्यास द्वारा तेखला में गो मूत्र प्रशोधन संयंत्र स्थापित किया गया। उत्तराखंड में यह पहला संयंत्र है।
इस संयंत्र की प्रतिदिन 10 हजार लीटर गोमूत्र शोधन की क्षमता है। संयंत्र के प्रबंधक माधव भट्ट ने बताया कि संयंत्र स्थापित करने का उद्देश्य गो संरक्षण के साथ ही गरीब एवं निर्धन महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारना है।
वर्तमान में संयंत्र से 4 से 5 हजार लीटर गोमूत्र का प्रतिदिन शोधन कर अर्क बनाया जा रहा है, जो चर्म रोग एवं पेट रोग की दवाईयों के निर्माण के लिए हरिद्वार भेजा जाता है।
ज्ञानसू की पवना बिष्ट के पति रघुवीर बिष्ट की पांच साल पहले दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।
पति की मौत के बाद पवना के ऊपर स्वयं के साथ ही बच्चों के पालन पोषण का जिम्मा भी आ गया, लेकिन पवना ने विषम परिस्थितियों का मात देते हुए दो गाय खरीदी और एक साल से दूध के साथ गोमूत्र बेच रही है।
अकेले गोमूत्र से दो से ढाई हजार रुपए प्रतिमाह कमा रही है। पवना ने ज्ञानसू की 27 अन्य महिलाओं को भी इस व्यवसाय से जोड़ा है।
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