आयुर्वेदिक पद्धति से गठिया का इलाज

गठिया, सुनने में यह रोग आज जितना सामान्य लगता है इसमें तकलीफें उतनी ही अधिक हैं। वैसे तो गठिया का उपचार आज एलोपैथ, आयुर्वेद और होम्योपैथ- चिकित्सा की तीनों विधाओं में मौजूद है। जब एलोपैथ से इसमें खास आराम नहीं मिलता तो इस दुष्ट रोग से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक पद्धति एक बेहतरीन विकल्प साबित होती है। बस आवश्यकता है, इस रोग के लक्षण पहचानकर, सही समय पर इसका उपचार सही आयुर्वेदिक विशेषज्ञ के परामर्श से करवाएं।

आयुर्वेदिक वैद्य अच्युत कुमार त्रिपाठी के अनुसार, ‘गठिया एक वात रोग है जिसका कारण कॉन्सटिपेशन, गैस, एसिडिटी, अव्यवस्थित जीवनशैली और अनियमित खान-पान आदि में से कुछ भी हो सकता है। कई बार शारीरिक श्रम कम होने और मानसिक श्रम अधिक होने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है।’

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गठिया के लक्षण
इस रोग में घुटनों व शरीर के दूसरे जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है जिसमें यदि असावधानी बरतें तो यह आगे चलकर उंगलियों व जोड़ों में सूजन और लाल रंग का घाव उत्पन्न कर देता है। इतना ही नहीं, अनदेखी करने पर इससे हाथ-पैर टेढ़े हो जाते हैं। इस बीमारी में हाथ व पैर को हिलाना भी मुश्किल हो जाता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा
अच्युत त्रिपाठी बताते हैं, ‘गठिया के उपचार में जितनी जरूरी इसकी चिकित्सा है, उतने ही जरूरी परहेज भी हैं। रोगी के लिए विशेष प्रकार के व्यायाम कराए जाते हैं और सप्ताह में एक से दो बार सोने के पहले 25 मिलीलीटर एरंड के तेल का दूध के साथ सेवन कराते हैं। इसके अलावा लक्षणों व रोग की गंभीरता के आधार पर उपचार किया जाता है।’

ये सावधानियां जरूरी
इस बीमारी में रोगी को ठंड से पूरी तरह बचना होगा। नहाने के दौरान गर्म पानी का इस्तेमाल करें और सूजन वाले स्थान पर बालू की थैली या गर्म पानी के पैड से सेंकाई करें। रोगी को अपनी शक्ति के अनुसार हल्का व्यायाम जरूर करना चाहिए।

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कैसी हो डाइट
गठिया के मरीजों के लिए डाइट पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। अधिक तेल व मिर्च वाले भोजन से परहेज रखें और डाइट में प्रोटीन की अधिकता वाली चीजें न लें। भोजन में बथुआ, मेथी, सरसों का साग, पालक, हरी सब्जियों, मूंग, मसूर, परवल, तोरई, लौकी, अंगूर, अनार, पपीता, आदि का सेवन फायदेमंद है। इसके अलावा, नियमित रूप से लहसुन व अदरक आदि का सेवन भी इसके उपचार में फायदेमंद है।

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